Friday, 17 June 2016

मां का हर रूप हो सुरक्षित

माता-पिता जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा बच्चे के पैदाइश से लेकर उसे बड़ा करने व उसे लायक बनाने में लगा देते हैं मगर वहीं माता-पिता जब बूढे हो जाते हैं तो युवा बेटे या बच्चे उसे साथ रखने के बजाय उसकी जिम्मेवारी से मुकरते हुए देखे जाते हैं। युवा पुत्र अपने परिवार के साथ अलग रहते हैं मगर मां कहीं और..जिन्दगी का अंतिम दौर बुरी परिस्थिति में जिती हुई देखी जाती है? हद तो तब हो जाती है जब बूढे माँ-बाप को ओल्ड एज होम में छोड़ दिया जाता है। ये कहां तक उचित है?
सोचने वाली बात है कि एक युवा महिला के रूप में महिला के कई अधिकार है, अगर किसी पुरूष ने छेड़ दिया तो उसके खिलाफ अधिकार। एक पत्नी के रुप में भी काफी अधिकार जैसे पति ने दहेज के लिए सताया या उसके साथ दुर्व्यवहार किया तो उसके खिलाफ कानूनी समर्थन।
विचारणीय तथ्य यह कि मां बनने के बाद महिला की सुविधाएं व अधिकार क्यों कम हो जाती है? जबकि महिला अपने जीवन का स्वर्णिम समय यानी जवानी का एक बड़ा हिस्सा बच्चे पैदा करने से लेकर उसके लालन-पालन व उसे बालिग बनाने तक में लगा देती हैं। विशेषकर मां अपने बच्चे के लिए अधिक समझौता करती है। इस कार्य में पिता के रुप में पुरूष भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब मां -बाप इतने महत्वपूर्ण किसी भी व्यक्ति के लिए है तो प्रत्येक बुजुर्ग मां-बाप को युवा बच्चों के तरफ से समुचित स्थान क्यों न मिले?
वैसे साहित्यिक रचनाओं में मां-बाप को काफी स्थान दिया जाता रहा है। कितने रचनाकारों ने मां-बाप को भगवान का दर्जा तक दे दिया मगर इससे क्या लाभ ? अगर मां-बाप को व्यवहार में मानव भी समझा न जाय। अर्थात् जब मनुष्य के जीवनभर के मूल्य के बदले उसे बूढापे के दौरान युवा बच्चे का सहयोग व संरक्षण न मिले (जबकि उस समय बुजुर्ग को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है) तो क्या फायदा उसके जीवन भर के सेवा का? या फिर युवा बच्चे को वो छुट दिया ही क्यों जाय कि वो मां-बाप को त्याग सके। अथवा ऐसा क्या किया जाय कि मनुष्य जीवन का अंतिम दौर बुजूर्गावस्था भी व्यक्ति का सुखमय व निश्चितंता पूर्वक बीते। ऐसे बहुत से प्रश्न जैसे-जैसे माता-पिता की उमर ढलती जाती है, उनके अपने भविष्य की चिन्ता विकराल रुप से खड़ी होती जाती है।
मातृत्व दिवस की प्रसंगिकता को देखते हुए इन प्रश्नों का महत्व बढ जाता है कि आखिर ऐसा क्या किया जाय कि मां को अपने मातृत्व पर गर्व होता रहे..उसे यह कमजोरी न लगे। कमजोरी इस अर्थ में कि अपने जीवनकाल में बच्चों को बनाने में ही उसने सारी ऊर्जा लगा दी, अपने लिए सोचा नहीं मगर अब जब युवा बच्चे भी उसके लिए नहीं सोचे तो क्या करे? कहां जाय? यानी उसे अपने कोख पर अफसोस न हो। यह तभी संभव है जब हरेक माता को अपनी सुरक्षित बुढापा का भी एहसास व विश्वास हो।
सुरक्षा में सबसे प्रथम आर्थिक सुरक्षा शामिल है। अधिकतर मां-बाप इसकी कमी को झेलते रहते हैं। युवा पुत्र शादी के बाद उन्हें साथ रखने से बचना चाहता है। बिना पैसे के बेटा से अलग रहना किसी भी बुजूर्ग मां-बाप के लिए कष्टदायी। ऐसी परिस्थिति में बुजूर्ग मां-बाप चाहे गांव में रहे या कहीं भी, बहुत ही कठिन परिस्थिति से गुजरते हैं। बिना पैसा के तो खुद का भरण-पोषण में भी दिक्कत। पैसा अधिक हो तो बेटा न रखे तो घर में नौकरों की मदद ली जा सकती है। अतः सबसे पहले एक मां को आर्थिक सुरक्षा मिलनी चाहिए ताकि दो रोटी वह हक से खा सके व इसके लिए किसी की मोहताज उसे न होना पड़े।
वैसे वृद्वापेंशन के अंतर्गत कुछ राज्यों मेें सरकार के तरफ से 500 से 1500 तक की राशि देने का प्रावधान बनाया गया है मगर इसमें भी बहुत झोल है। या तो इसे प्राप्त करने की पात्रता सबकी नहीं है या फिर इसकी प्रक्रिया इतनी कठिन की गरीबी की समस्या से जूझते हुए भी सभी इस नाममात्र राशि का भी लाभ नहीं उठा पाते। प्रश्न तो यह भी कि अगर वृद्व माता-पिता को 1000-1500 रू. महिने का मिल भी जाय तो इससे तो महीने भर की रोटी भी नसीब होना मुश्किल तो फिर क्या किया जाय। कैसे माता को आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जाय?

इस विषय पर कुछ लोगों से बात करने पर पाया कि उसके पुत्र या पुत्री को हर हाल में बुढापा में मां-बाप की जिम्मेदारी उठानी चाहिए व साथ रखनी चाहिए। ऐसा नहीं कर पाने की स्थिति में बेटा की कमाई व उसके जिम्मेदारी के हिसाब से करीब 2-5 प्रतिशत हर महीने उसके सैलरी से मां के एकाउंट में भेज दिया जाय व यह नियमित रूप से निश्चति तौर पर हो सके, ये सरकार सुनिश्चित करे। एक न्यूनतम राशि बेटे-बेटी के एकाउंट में से जाने से उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा मगर वृद्ध मां बाप को वह जीवन देगा व उसके जीवन प्रक्रिया को चलाने में सहायक होगा। वैसे भी जब मां-बाप अपनी संपत्ति व सबकुछ बेटा के नाम कर देते हैं तो उन्हें आजीवन बेटा से या फिर अपनी संपत्ति की वारिस से भोजन व जीने की न्यूनतम अधिकार तो चाहिए ही। वैसे सरकार बुजूर्गों के हित के लिए ऐसा कोई बीमा करा सकती है जो उनके वृद्वावस्था के लिए बहुत उपयोगी हो।

-कुलीना कुमारी

-महिला अधिकार अभियान के मई-जून 2016 अंक में प्रकाशित