Sunday, 14 September 2014

शिक्षक की महत्ता

-कुलीना कुमारी


सितम्बर महीना शिक्षक दिवस के लिए खास है। शिक्षक दिवस में हम शिक्षक की महŸाा पर एक बार और चर्चा करते हैं और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता जताते हैं। पर शिक्षक की महŸाा किसी एक दिन या महीने तक ही सीमित नहीं, ये तो हमेशा के लिए महŸवपूर्ण है। वैसे शिक्षक दिवस हर वर्ष 5 सितम्बर को अपने देश व विशेषकर स्कूलों में शिक्षक व गुरू की महŸाा के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन हमारे प्रथम उपराष्ट्रपति व दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था पर उनकी कैरियर की शुरूआत एक शिक्षक के रूप में हुई और वह एक अच्छे शिक्षक के रूप में जाने गये। हमारे ख्याल से हर पद से बड़ा गुरू का पद है, गुरू को तो मां-बाप से भी ऊंचा स्थान दिया गया है। इस संदर्भ में किसी लोककवि ने लिखा है कि ‘गुरू गोबिन्द दोऊ खड़े काको लागू पांव। बलिहारी गुरू आपनी गोबिन्द दिओ चिन्हाय।।’ सही में गुरू इस सम्मान के लायक है, मां-बाप तो बच्चों को जन्म देते हैं मगर गुरू जीवन निर्बहन कैसे किया जाये, उसे शिक्षित कर न केवल उसके लिए आर्थिक आधार तैयार करते हैं बल्कि जीवन जीने का तरीका भी सिखाते हैैं।
कालांतर से विद्यार्थी और शिक्षक का रिश्ता या गुरू या शिष्य/शिष्या का रिश्ता बहुत खास रहा है, विद्यार्थी को दिशा देने में शिक्षक का योगदान अकल्पनीय रहा है। न केवल एक शिक्षार्थी के रूप में हम अपने शिक्षक से पाठ्यक्रमों से अवगत होते हैं,  बल्कि हमारे जीवन के सोच, जटिलताओं को झेलने का तरीका, हमारी नैतिकता व आगे बढ़ने की दिशाएं आदि का भी प्रभाव शिक्षक का हमारे ऊपर पड़ता है। फिर बचपन में प्रायः बच्चे का मन सजीव कच्ची मिट्टी जैसे होता हैं, उसे जैसा गढ़ा जाये या उसकी शिक्षा जैसा भी हो, उसका उस पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
आज गुरूकुल की प्राचीन अवधारणाएं समाप्त हो चुकी है। लेकिन आधुनिक स्वरूप में स्कूल नाम से इसका अस्तित्व है, आज बच्चों के विकास के लिए बड़ी संख्या में हर समाज व समुदाय में स्कूल स्थापित है। स्कूल व्यवस्था मुख्यतः दो रूपों में विभाजित है-प्रायवेट और सरकारी स्कूलों के रूप में। विकीपीडिया के अनुसार, करीब 29 प्रतिशत भारतीय बच्चें प्रायवेट स्कूल से शिक्षा प्राप्त करते हैं। दोनों तरह के स्कूल सरकारी व प्रायवेट स्कूल के बारे में तुलनात्मक अध्ययन बताता है कि निजी स्कूल में अच्छी शिक्षा मिलती है, बच्चों को सुविधाजनक कक्षाएं, मूलभूत सुविधाएं अंग्रेजी का ज्ञान और अधिक मात्रा में प्रशिक्षित या अच्छे शिक्षक भी। निजी और सरकारी स्कूल के शिक्षक व विद्यार्थी का अनुपात में भी अंतर है, विकीपीडिया के अनुसार, प्रायवेट स्कूलों के शिक्षक व विद्यार्थी का अनुपात 1रू31है जबकि सरकारी स्कूलों में शिक्षक व विद्यार्थी का अनुपात 1रू37 है। महिला शिक्षक भी प्रायवेट स्कूलों में ज्यादा है जबकि सरकारी स्कूलों में उसकी तुलना में कम। विश्व बैंक के अनुसार, सन 2000 में प्रायमरी सेक्शन में महिला शिक्षक का प्रतिशत 35.6 रहा जबकि सेकेन्ड्री सेक्शन में महिला शिक्षक 34.3 प्रतिशत रही।
एक बड़ा वास्तविक अंतर प्रायवेट स्कूल और सरकारी स्कूल में यह है कि प्रायवेट स्कूल में वही अपने बच्चें को पढ़ा सकते हैं जिनके पास अधिक पैसा हो जबकि सरकारी स्कूल सरकार द्वारा संचालित है और निःशुल्क कर दिया है, इस स्कूल में अमीर ही नहीं गरीब भी बच्चों को पढ़ा सकते हैं। पर शिक्षक चाहे सरकारी स्कूल की ही क्यों ना हो, शिक्षक ही वह रचयिता है जो बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर व सही दिशा दिखाकर उसे कीचड़ में भी कमल के तरह खिलने का मंत्र बता सकते है।
वैसे सरकारी स्कूल व शिक्षकों पर अधिक भार है, अभी भी 69 प्रतिशत बच्चें यही से पढ़कर आते हैं या यही शिक्षा प्राप्त करते हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद से अधिक से अधिक बच्चों का नामांकन कराना व उसे उचित शिक्षा प्रदान करना शिक्षकों के महŸवपूर्ण जिम्मेदारी में शामिल हो गया है। मेंटिनेन्स मांगते स्कूल भवन, टूटे-फूटे बेंच, या उसका कम होना, लड़की बच्ची के लिए शौचालय की असुविधा आदि की कमी की वजह से हमारे शिक्षक भी प्रभावित होते हैं पर बेहतर शिक्षा व विद्यार्थी का रिजल्ट अच्छा हो व वे सफल जीवन बिताए, इसकी तमन्ना चाहे सरकारी स्कूल के शिक्षक हो या प्रायवेट स्कूल के, दोनों के मन में इसकी समान भावनाएं होती है या हो सकती है। मेरा मानना है कि बेशक मूलभूत सुविधाएं बच्चों को निजी स्कूलों में बेहतर मिलती हो पर अच्छा शिक्षक मिलना तो सौभाग्यशाली होने के समान है, यह बच्चा को किसी भी स्कूल में मिल सकता है और जिन्हें अच्छे गुरू की कृपा मिल जाये, उनका जीवन सार्थक हो जाता है।
बच्चे परिवार के लोगों के बाद अपने शिक्षक से बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं, उनके पढ़ाने का तरीका, उनके प्यार या प्रोत्साहित करने का तरीका व उनका गुस्सा, सब चीजों का प्रभाव बच्चें के ऊपर पड़ता है। अगर किसी विद्यार्थी को कोई शिक्षक अधिक प्यार करते हैं तो वह विद्यार्थी अपने उस प्रिय शिक्षक का स्नेह हमेशा पाने हेतु उनके विषय का गंभीरता पूर्वक अध्ययन करता है व उनकी कक्षा में ठीक व्यवहार रखता है व भविष्य में भी उनके जैसा बनने की कोशिश करता है जबकि अधिक डांटने वाले शिक्षक से बच्चें बहुत डरते हैं व घबराहट में या उनको नहीं पसंद नहीं किए जाने के कारण उनके द्वारा पढ़ाए गए विषय में बहुत अच्छा बच्चों का प्रजेंटेशन नहीं होता।
इस संदर्भ में मैंने कुछ स्कूल के बच्चों से बात की और उनका अध्ययन और शिक्षक के बारे में विचार जानना चाहा। एक विद्यार्थी ने अपने मैथ के शिक्षक के बारे में शिकायत करते हुए बताया कि इससे पहले जो मैथ की टीचर थी, वह अच्छे से व बहुत समझाकर पढ़ाती थी तो हमें मैथ समझ में आता था पर दूसरी टिचर के आने के बाद हमें मैथ समझ में नहीं आ रहा, उनका पढाने का तरीका हम समझ ही नहीं पाते। जबकि एक साइंस की स्टुडेंट ने बताया कि हमारे शिक्षक विज्ञान को इतना समझाकर व सुरूचिपूर्ण ढंग से पढ़ाते हैं कि मुझे साइंस पढ़ने में मजा आता है और मैं आगे चलकर साइंस ही रखना चाहूंगी। इसी तरह कोई और विद्यार्थी कला और मोरल साइंस के शिक्षक की तारीफ की। कुछ अन्य विद्यार्थियों ने अपने पसंदीदा टीचर की तारीफ की और उनके विषय में पढ़ाई में मन लगने की बात की। एक विद्यार्थी ने दूर से कोई चीज उठाकर मारने वाले टीचर से डरने की बात की और इसीलिए उनका काम कैसे भी पूरा करने की बात की। जबकि एक अन्य विद्यार्थी ने अपने क्लास टीचर की तारीफ की और कहा कि हमारे शिक्षक हम सभी बच्चों का बहुत ध्यान रखते हैं और हमारी बेहतरी के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं।
बच्चे शिक्षक द्वारा पढाए गए विषय पर ही केंद्रित नहीं होता बल्कि पढ़ाई के दौरान उनके व्यवहार को भी गौर से देखता है, एक बच्चा अपने शिक्षक के बारे में बताया कि उसके एक शिक्षक जब बच्चों को डांटते हैं तो अपना दांत बाहर निकाल लेते हैं और मुंह बनाकर बात करते हैं, किसी और लड़की का अपने शिक्षिका के बारे में कहना था कि मेरी वह मैडम एक दोहे को अपने हर कक्षा में दोहराती है, वो दोहा इतना सुन-सुन कर पक चुकी हूं कि वो अच्छे तरह से याद हो गया है और कब वह दोहा मैडम बोलेगी, हमें पहले से ही पता होता है। वैसे कहने को तो कहा जाता है कि विद्यार्थी का अपने शिक्षक के लिए श्रद्धा वाला भाव होना चाहिए, पर हमेशा ऐसा नहीं हो पाता। आज कल के विद्यार्थी या तो टिचर को श्रद्धा के दृष्टिकोण से देखते हैं या उस लायक ना लगे टीचर तो मजाक के दृष्टिकोण से या अपने एक दोस्त की नजर से, एक विद्यार्थी कह रही थी कि मेरी एक मैडम को पढ़ाते वक्त आंख मारने की आदत है, वैसे मैंने हंसकर कहा कि तुम्हें डरने की क्या जरूरत, कोई जेन्टस टीचर थोड़े ही है जो तुम्हें डरने की जरूरत हो।
इसी संदर्भ में मुझे भी अपने एक टीचर का एक संदर्भ याद आ रहा, हमारी एक सहपाठिन ने एक यंग टीचर से शिकायत की थी कि मास्टर साहब, हमें कोई लड़का घूर रहा पर हमारे वह स्मार्ट शिक्षक उस लड़के का पक्ष लिया और कहा कि अगर तुम उसके तरफ नहीं देखी तो कैसे पता चला कि वह लड़का घूर रहा। हमारे साइंस के यह शिक्षक लड़का-लड़की से जुड़े ऐसे कई अनछुए टॉपिक पर बात करते और हम विद्यार्थी उन टीचर से श्रद्धा कम पर लगाव अधिक रखते थे पर उनकी इस शिक्षा की वजह से लड़का-लड़की से जुड़े कई मुद्दे को नए दृष्टिकोण से हमें समझने का अवसर मिला।
उपरोक्त पूरे वाकये को बताने का मेन मकसद बच्चे के ऊपर शिक्षक का पड़ने वाला प्रभाव बताना था। उपरोक्त तथ्यों के माध्यम से यह भी कहा जा सकता है कि शिक्षक होना बड़ी बात नहीं, पर अच्छा शिक्षक के रूप में बच्चों का विश्वास प्राप्त करना बड़ी बात है, बड़ी बात है अपनी बातें इस तरह बच्चों तक पहुंचाना जिससे सामान्य बच्चें को भी उनकी बात आसानी से समझ आए और बच्चें के ऊपर उनका सकारात्मक असर हो। पहले भी अच्छे शिक्षक की मांग रहती थी और आज भी अच्छा, सुरुचिपूर्ण तरीके से पाठ को समझाने वाला, मिलनसार व समझदार टीचर बच्चों को पसंद आते हैं
साथ ही किसी विषय में जानकार या विद्वान होना अलग बात है, पर अपनी विद्वता का ज्ञान बच्चों को भी दे पाये यह बिल्कुल दूसरी बात। हमारे स्कूल में एक अंग्रेजी व रेखा गणित के शिक्षक थे, उनके जैसा अंग्रेजी में जानकार या विद्वान मैंने अब तक के अपने जीवन काल में नहीं देखा। हमारे वह शिक्षक हरेक लाइन को पहले अंग्रेजी में बोलते और फिर हिंदी में। न केवल पढ़ाने के दौरान बल्कि इससे इतर भी, उनके जीवन चर्या में यह प्रक्रिया शामिल थी, पता नहीं मुझे कि ऐसे अंग्रेजी में महारत टीचर हमारे बिहार के छोटे से गांव के हाई स्कूल में कैसे उपलब्ध हो पाए पर हमारे इस शिक्षक में शायद यह कमी थी कि उनके क्लास में विद्यार्थी खूब हल्ला करते थे, उनकी महान विद्वता के बाद भी वे अपनी बात शायद विद्यार्थी के मन-मुताबिक पहुंचा नहीं पाते थे। पर हां, अगर मैं अंग्रेजी की जानकार होना चाहती हूं तो अपने उस शिक्षक के तरह, आज भी हमारी ऐसी चाहत।
हमारे मैथ के टीचर हम बच्चों को नियमित मेहनत करने को प्रोत्साहित के लिए चाकू का उदाहरण दिया करते थे, वो कहते थे कि तेज चाकू को अगर छोड़ दो तो उसमें जंग लग जाती है, तेज चाकू मतलब तेज स्टुडेंट अगर वो रोज नहीं पढेंगे तो उनमें जंग लग जाएगी पर जो सामान्य स्टुडेंट है, वो रोज मेहनत करेंगे तो वो तेज स्टुडेंट से आगे निकल सकते हैं जैसे जंग लगी चाकू को रोज चमकाए जाए तो वह चमकता ही रहता है, इसीलिए रोज मेहनत करो। बचपन में सुनी गई अपने शिक्षक की यह बात आज भी मुझे याद है और यह इतना प्रेरणाप्रद लगा कि ये बात मैंने अपने बच्चों से भी रोज मेहनत करने को उत्साहित रखने के लिए बच्चों को भी बताया।
हमारे हिंदी के टीचर हमें बहुत मानते थे, शायद इसलिए हम हिंदी में खूब मेहनत करते थे, फलस्वरूप मुझे इस विषय में अच्छे नम्बर भी आते थे। इसे संयोग कहा जा सकता है या उनका प्रोत्साहन पर आज कैरियर भी मेरा हिंदी की वजह से हैं। उनका अपने प्रति विशेष अपनापन देखकर मुझे फील होता था कि उन्हें मुझ पर बहुत विश्वास है और एक जज्बा सा पैदा होता था कि हमें अच्छा और बहुत अच्छा करना है ताकि उनका विश्वास बना रहे। ओ हम विद्यार्थियों को आगे बढ़ने के लिए व जीवन में अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। आज भी जब-जब जीवन में सफलता मिलती है, हमें अपने उस शिक्षक के कहे शब्द व आशिर्वाद याद आ जाता है। ये सारी बातें सिर्फ मेरे साथ ही नहीं, अन्य विद्यार्थी भी महसूस करते होंगे और उनके ऊपर भी अपने शिक्षक का प्रभाव ताउम्र चलता है।
पढ़ाई के अलावा भी हमारे यह शिक्षक अपने बारे में बताते रहते थे, मुझे याद है, उन्होंने कहा था कि खाना मैं अपनी पत्नी से ज्यादा बढिया बनाता हूं, अलग बात कि मैं कभी-कभी बनाता हूं, इसीलिए तेल घी अधिक खर्च होता है पर पत्नी मेरी रोज यह काम करती है तो तेल-घी कम देती है, शायद इसी वजह से ऐसा होता हो। अपने शिक्षक के मुंह से सुनी बातों के बाद शायद पहली बार हमने जाना होगा कि पुरुष भी महिला के काम या खाना बनाने वाला काम में हाथ बंटा सकते है। ऐसी बहुत सी बातों का प्रभाव हम विद्यार्थियों के ऊपर पड़ता है। हो सकता है कि हमारे शिक्षक के इस तथ्य ने हमें महिला होने पर भी हीनता से उबार दिया हो व पुरुष के तरह अपना स्वतंत्र सोच रखने के लिए प्रेरित किया हो। मेरे ख्याल से अगर शिक्षक में पाठयक्रम को अच्छा समझाने का तरीका के साथ-साथ समानतावादी, सहृदय व व्यवहार कुशल हो तो उन सब चीजों का प्रभाव विद्यार्थी के जीवन पर पड़ता है, उनके सद्गुणों की वजह से न केवल बच्चो का अच्छा विकास होता है बल्कि उसमें भी ओ सद्गुण लाने की प्रेरणा बनती है, आज भी महिला की जो दोयम स्थिति बनी है, अगर शिक्षक चाहे तो उसे प्रोत्साहित कर उसे आगे बढ़ाने में सबसे अधिक भूमिका निभा सकते हैं। इसीलिए अच्छा शिक्षक न केवल देश की संपŸिा है बल्कि सबसे ज्यादा असर करने वाला व सबसे अच्छा मार्गदर्शक भी।

कुल, मिलाकर कहा जा सकता है कि शिक्षक का प्रभाव विद्यार्थी के ऊपर बहुत ज्यादा पड़ता है, विद्यार्थी उनसे न केवल अपने पाठ को समझते हैं बल्कि जीवन के पाठ भी उनसे समझते हैं और बड़े होकर उनके जैसा बनना चाहते हैं या किसी न किसी रूप में उनके शिक्षा से प्रभावित होते हैं। इसीलिए गुरू की महŸाा बहुत है। इस शिक्षक दिवस के अवसर पर हम अपने अच्छे और पसंदीदा शिक्षक को एक बार और याद करे और उनके दिए योगदान के लिए नतमस्तक हो साथ ही अपने बच्चों को भी शिक्षक के प्रति आदर करना सिखाये ताकि स्वस्थ रिश्ता विद्यार्थी और शिक्षक के बीच पनपे जिससे हमारे बच्चें के न केवल अध्ययन में फायदा होगा बल्कि भविष्य भी उसका संवरना आसान होगा। सकारात्मक ऊर्जा उसे आगे बढ़ने के लिए रास्ते बनाएगा।

महिला अधिकार अभियान के सितम्बर-2014 का संपादकीय