हर साल 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। पर्यावरण का सीधा संबंध प्रकृति से है और इसके बिना मानव का अस्तित्व नहीं। अथवा अगर पर्यावरण प्रदूषित रहेगी तो उसका असर मानव जीवन पर भी पड़ेगा ही। पर्यावरण के अंतर्गत हमारे आस-पास का सारा माहौल शामिल है-जैसे जल, वायु, भूमि-इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधे, सूक्ष्म जीव व अन्य जीवित पदार्थ इस पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं। मगर मानव द्वारा आवश्यकता से अधिक प्रकृति का दोहन या उसके विभिन्न कार्य-कलापों की वजह से प्रकृति के तीन मुख्य स्रोत, भूमि, जल तथा वायु प्रदूषित होता जा रहा है।
दिनोनदिन पर्यावरण की बिगड़ती हालात विश्व पटल पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया।
इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। तथा इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था।
उक्त गोष्ठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ‘पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव’ विषय पर व्याख्यान दिया था। पर्यावरण-सुरक्षा की दिशा में यह भारत का प्रारंभिक कदम था। तभी से हम प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे हैं।
इस तरफ पहल करते हुए 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण लागू हुआ।
उसके बाद से करीब करीब हर साल अपने भारत में पर्यावरण दिवस के अवसर पर कई प्रकार के सकारात्मक पहल की बात की जाती है मगर यह वास्तविकता के धरातल पर कम ही उसका उपयोग किया जाता है। आज भी भारत में पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ी समस्या है व इसमें शिध्रातिशिध्र सुधार की बड़ी आवश्यकता है।
वैसे पर्यावरण प्रदूषण के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की चीजें शामिल हो सकती है मगर मुख्यतः इसे चार प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है
साथ ही प्लास्टिक का थैले, बोतल तथा अन्य प्रोटक्ट में इसका अधिकााधिक प्रयोग भी पर्यावरण के लिए खतरा है, क्योंकि इसका असानी से अपघटित नहीं होता व हजारों वर्षों तक यह भूमि में यूंही दबा रहता है व भूमि व पानी को खराब करता रहता है। साथ ही इसमें इतना जहरीला तŸव पाया जाता है कि प्लास्टिक खाने से गायों व जानवरों की बीमारियां व मौत तक हो जाती है, चिड़ियों तक को इसकी वजह से मरते हुए पाया गया है।
वैसे प्लास्टिक में रखे गरम खाने से भी व्यक्ति में विभिन्न प्रकार की बीमारियां होती है क्योंकि गरम अवस्था में खाने में प्लास्टिक के जहरीला तŸव मिल जाते हैं और वही भोजन ग्रहण करने पर व्यक्ति को विभिन्न प्रकार का नुकसान होता है जैसे कैंसर, और बहुत सारी त्वचा से संबंधित बीमारियां हो जाती हैं।
इसके अतिरिक्त खेतों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए मानव अधिकाधिक रूप से कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करता है जिससे भूमि की उत्पादन क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है और एक दिन जमीन बंजर हो जाती है। इसका दूसरा दुष्प्रभाव कि अन्न और फल भी हमें दूषित प्राप्त होते हैं जो हमारे शरीर के लिए नुकसान दायक है।
भूमि प्रदूषण से नियंत्रित होने के कुछ उपाय
1. हमारे भारतीयों के लिए भी नियत किया जाना चाहिए कि गंदगी हम एक नियत स्थान या स्थानीय कूड़ा घर में ही अपने घर की गंदगी को डाले। इधर-उधर कूड़ा डालने पर दंडित किया जाना चाहिए या जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
2. प्लास्टिक पर एक कठोर कानून बनना चाहिए क्योंकि यह सबसे ज्यादा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। जब तक बहुत जरूरी ना हो, इसका प्रयोग ना किया जाय और इसके जगह पर जूट या कपड़े का थैला का उपयोग किया जाए और उसे प्रोत्साहित किया जाए।
3. खाद्दपदार्थ को उपजाने के लिए खेतों में हमें रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग ना करके प्राकृतिक उर्वरक जैसे गोबर तथा प्राकृतिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
धार्मिक अवसरों पर पूजा पाठ का सामान फूल, राख व मूर्Ÿिायों का विर्सजन भी जल को प्रदूषित करता है। साथ ही हमारे यहां जल को रिसाइक्लिंग की अच्छी योजना नहीं है, ंइस वजह से साफ पानी नहीं मिलता, साथ ही आज भी कितने ही जगह पर घर तक स्वच्छ पानी पहुंचाने के लिए प्रोपर वे में पाइप लाइन नहीं बिछाया गया, जहां पाइपलाइन गई भी, वहां सीवर व पानी के पाइप के बीच उचित दूरी नहीं रखी गई है, जिससे कितनी ही बार गंदा पानी सप्लाई हो जाता है और मजबूरन लोग जीने के लिए गंदा पानी पीन को अभिशप्त है और गंदे जल ग्रहण की वजह से कितनी ही बीमारियों के शिकार मनुष्य होता है। जल निकासी की व्यवस्था नहीं है इसलिए भी जहां तहां ग्रामीण इलाकों में पानी जमा हो जाता है, सड़ते हुए पानी और उसमें मिले कचड़े दूर्गांध का कारण है, जिससे मच्छर व कई तरह के बीमारियां पनपती है, या फिर वही पानी जमीन में चला जाता है। ये भी कम आश्चर्य की बात नहीं कि हमारे देश में कही लोग पानी के लिए तरसते हैं और किसी राज्य में हर साल आने वाले बाढ से भी कई तरह के नुकसान होती है।
जल प्रदूषण दूर करने के कुछ उपाय
फैक्ट्रियों, कंपनियों व घरों के अपशिष्ट पदार्थ को पानी में विसर्जित नहीं की जाय, व जल की स्वच्छता के लिए रिसाइक्लिंग की व्यवस्था की जाय।
नए घर बनाने का तभी परमिशन दी जाय जब उसमें सौर ऊर्जा व रेन हारवेस्टिंग भी उसमें शामिल हो।
नदियों को जोड़ने की योजना बनाई जाए क्योंकि कोई राज्य बाढ से परेशान होता है मगर कई राज्य पानी तक के लिए भी तरसता है, इसका ध्यान रखते हुए अधिकाधिक पानी आने की स्थिति में जिधर की नदियां सूखी हो, उस तरफ पानी को मोड़ दिया जाय, जिससे किसी भी राज्य को परेशानी ना हो।
गंदा पानी व उसके ग्रहण से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए वाटर प्यूरिफायर का उपयोग घर-घर में हो। बारिश का ध्यान रखते हुए जल निकासी की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
नियंत्रण के उपाय
जनजीवन से दूर फैक्ट्रियां, ईटा भट्टी या धुएं निकालने वाली चीजें प्रयोग की जानी चाहिए, रसायनिक प्रयोगशाला भी मानव के समूहों से दूर रहना चाहिए।
मगर उसका दुष्प्रभाव कम करने के लिए उस आस-पास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में पेड़-पौधे लगाई जानी चाहिए ताकि पेड़ पौधे वातावरण शुद्ध करे।
पेट्रोल या डीजल वाली गाड़ी के जगह पर सीएनजी वाली गाड़ी का उपयोग किया जाय, दिल्ली का प्रदूषण स्तर घटाने में सीएनजी गाड़ी का एक मुख्य भूमिका निभाई है। इसे उदाहरण के रूप में अन्य क्षेत्रों में भी प्रयोग किया जाना चाहिए।
ट्रेन की आवाज, गाड़ियों का हार्न, लाउडस्पीकर का अधिक तेज बजना, कान में म्युजिक के लिए मोबाइल का लीड अधिक देर तक रखना आदि मनुष्य के सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है।
उपाय
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए सभी ध्वनि पैदा करने वाले गाड़ी या उपकरणों का एक सीमा नियत किया जाना चाहिए, और इसका पालन नहीं करने पर दंड या जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए।
कुलमिलाकर, पर्यावरण से तो जन-जन का संबंध है, स्वच्छ पर्यावरण होने पर स्वच्छ जमीन, अन्न, जल और वायु तीनों ही मिलेंगे और ये स्वच्छता व्यक्ति के विकास में सकारात्मक भूमिका निभाएगा।
मगर पर्यावरण स्वच्छ रखना सिर्फ सरकारी स्तर पर ही जरूरी नहीं बल्कि यह व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर भी जरूरी है। इस भूमिका में महिला की एक महŸवपूर्ण भूमिका हो सकती है। अगर स्वच्छ घर, साफ भोजन और स्वच्छ हवा मिलेगा तो ना केवल अगला पीढ़ी स्वस्थ पैदा होगा बल्कि मां के रूप में महिला एक महŸवपूर्ण भूमिका निभा सकती है। चूंकि प्राथमिक गुरू मां ही होती है, तो वह अपने बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बना सकती है, बता सकती है कि स्वच्छता कितना जरूरी है, मां अपने आस-पास क्षेत्र में पेड़ लगाए व अपने बच्चों को भी लगाना सिखाए, साथ ही ना केवल घर बल्कि अपने आस-पास के क्षेत्र को भी गंदा करने से मना करे।
समाजिक तौर पर ना केवल घर का सदस्य अपने घर को साफ रखे बल्कि अपने सामने के बाहरी क्षेत्र को भी साफ रखे, साथ ही अपने आस पड़ोस को भी गंदा करते हुए देखे तो मना करे। इसके अतिरिक्त अपने अपने क्षेत्र में क्षेत्रवासी मिलकर कुछ आदमी अपने क्षेत्र के रोड व नालियां साफ रखने के लिए रखे व सामूहिक रूप से इस हेतु मूल्य प्रदान करे, इससे क्षेत्र भी साफ रहेगा और किसी एक पर भार भी नहीं पड़ेगा।
पर्यावरण साफ रहने से कितने सारे फायदे होते हैं और यह क्यों जरूरी है, इस हेतु जगह-जगह जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया जाए।
सामाजिक कार्यकर्Ÿाा, सामाजिक विचारक व लेखक का भी दायिŸव कि इस हेतु लोगों को जागरूक करें और सरकार पर भी दवाब बनाए कि जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए, ऐसे चीज का प्रयोग बंद किया जाय और उसका विकल्प तैयार किया जाए।
स्वच्छ पर्यावरण में ही स्वस्थ मानव का विकास संभव है और इसके लिए सबका एक-एक कदम जरूरी है।
दिनोनदिन पर्यावरण की बिगड़ती हालात विश्व पटल पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया।
इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। तथा इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था।
उक्त गोष्ठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ‘पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव’ विषय पर व्याख्यान दिया था। पर्यावरण-सुरक्षा की दिशा में यह भारत का प्रारंभिक कदम था। तभी से हम प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते आ रहे हैं।
इस तरफ पहल करते हुए 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण लागू हुआ।
उसके बाद से करीब करीब हर साल अपने भारत में पर्यावरण दिवस के अवसर पर कई प्रकार के सकारात्मक पहल की बात की जाती है मगर यह वास्तविकता के धरातल पर कम ही उसका उपयोग किया जाता है। आज भी भारत में पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ी समस्या है व इसमें शिध्रातिशिध्र सुधार की बड़ी आवश्यकता है।
वैसे पर्यावरण प्रदूषण के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की चीजें शामिल हो सकती है मगर मुख्यतः इसे चार प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है
भूमि प्रदूषण
गंदगी विभिन्न प्रकार की बीमारियों की जड़ है। जबकि स्वच्छता हमारे अंदर सकारात्मक व स्वस्थ वातावरण प्रदान करता है। माननीय प्रधानमंत्री का ‘स्वच्छ भारत अभियान’ इसी तरह का एक कदम है। मगर आज भी सार्वजनिक प्लेस पर विभिन्न प्रकार की गंदगी देखी जाती है। भारत गंदगी फैलाने में शायद अव्वल दर्जे के देशों में शामिल है, इसकी बड़ी वजह यह कि यहां नागरिक कर्Ÿाव्य का अभाव सा है। अगर कोई सार्वजनिक प्लेस पर गंदा फेंक दे तो उसे दंडित नहीं किया जाता और ना जुर्माना लिया जाता है, जबकि दूसरे देशों में सार्वजनिक स्थान को गंदा करने पर दंडित किया जाता है तो वहां की जनता अपने देश में साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखती है।साथ ही प्लास्टिक का थैले, बोतल तथा अन्य प्रोटक्ट में इसका अधिकााधिक प्रयोग भी पर्यावरण के लिए खतरा है, क्योंकि इसका असानी से अपघटित नहीं होता व हजारों वर्षों तक यह भूमि में यूंही दबा रहता है व भूमि व पानी को खराब करता रहता है। साथ ही इसमें इतना जहरीला तŸव पाया जाता है कि प्लास्टिक खाने से गायों व जानवरों की बीमारियां व मौत तक हो जाती है, चिड़ियों तक को इसकी वजह से मरते हुए पाया गया है।
वैसे प्लास्टिक में रखे गरम खाने से भी व्यक्ति में विभिन्न प्रकार की बीमारियां होती है क्योंकि गरम अवस्था में खाने में प्लास्टिक के जहरीला तŸव मिल जाते हैं और वही भोजन ग्रहण करने पर व्यक्ति को विभिन्न प्रकार का नुकसान होता है जैसे कैंसर, और बहुत सारी त्वचा से संबंधित बीमारियां हो जाती हैं।
इसके अतिरिक्त खेतों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए मानव अधिकाधिक रूप से कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करता है जिससे भूमि की उत्पादन क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है और एक दिन जमीन बंजर हो जाती है। इसका दूसरा दुष्प्रभाव कि अन्न और फल भी हमें दूषित प्राप्त होते हैं जो हमारे शरीर के लिए नुकसान दायक है।
भूमि प्रदूषण से नियंत्रित होने के कुछ उपाय
1. हमारे भारतीयों के लिए भी नियत किया जाना चाहिए कि गंदगी हम एक नियत स्थान या स्थानीय कूड़ा घर में ही अपने घर की गंदगी को डाले। इधर-उधर कूड़ा डालने पर दंडित किया जाना चाहिए या जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
2. प्लास्टिक पर एक कठोर कानून बनना चाहिए क्योंकि यह सबसे ज्यादा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। जब तक बहुत जरूरी ना हो, इसका प्रयोग ना किया जाय और इसके जगह पर जूट या कपड़े का थैला का उपयोग किया जाए और उसे प्रोत्साहित किया जाए।
3. खाद्दपदार्थ को उपजाने के लिए खेतों में हमें रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग ना करके प्राकृतिक उर्वरक जैसे गोबर तथा प्राकृतिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
जल प्रदूषण
फैक्ट्रियों, कंपनियों व घरों के अपशिष्ट पदार्थ जो नदियों में मिलता है, उससे जल प्रदूषित होता है, या फिर जल परिवहन द्वारा रिसने वाला रसायनिक तŸव आदि भी जल प्रदूषण का कारण है।धार्मिक अवसरों पर पूजा पाठ का सामान फूल, राख व मूर्Ÿिायों का विर्सजन भी जल को प्रदूषित करता है। साथ ही हमारे यहां जल को रिसाइक्लिंग की अच्छी योजना नहीं है, ंइस वजह से साफ पानी नहीं मिलता, साथ ही आज भी कितने ही जगह पर घर तक स्वच्छ पानी पहुंचाने के लिए प्रोपर वे में पाइप लाइन नहीं बिछाया गया, जहां पाइपलाइन गई भी, वहां सीवर व पानी के पाइप के बीच उचित दूरी नहीं रखी गई है, जिससे कितनी ही बार गंदा पानी सप्लाई हो जाता है और मजबूरन लोग जीने के लिए गंदा पानी पीन को अभिशप्त है और गंदे जल ग्रहण की वजह से कितनी ही बीमारियों के शिकार मनुष्य होता है। जल निकासी की व्यवस्था नहीं है इसलिए भी जहां तहां ग्रामीण इलाकों में पानी जमा हो जाता है, सड़ते हुए पानी और उसमें मिले कचड़े दूर्गांध का कारण है, जिससे मच्छर व कई तरह के बीमारियां पनपती है, या फिर वही पानी जमीन में चला जाता है। ये भी कम आश्चर्य की बात नहीं कि हमारे देश में कही लोग पानी के लिए तरसते हैं और किसी राज्य में हर साल आने वाले बाढ से भी कई तरह के नुकसान होती है।
जल प्रदूषण दूर करने के कुछ उपाय
फैक्ट्रियों, कंपनियों व घरों के अपशिष्ट पदार्थ को पानी में विसर्जित नहीं की जाय, व जल की स्वच्छता के लिए रिसाइक्लिंग की व्यवस्था की जाय।
नए घर बनाने का तभी परमिशन दी जाय जब उसमें सौर ऊर्जा व रेन हारवेस्टिंग भी उसमें शामिल हो।
नदियों को जोड़ने की योजना बनाई जाए क्योंकि कोई राज्य बाढ से परेशान होता है मगर कई राज्य पानी तक के लिए भी तरसता है, इसका ध्यान रखते हुए अधिकाधिक पानी आने की स्थिति में जिधर की नदियां सूखी हो, उस तरफ पानी को मोड़ दिया जाय, जिससे किसी भी राज्य को परेशानी ना हो।
गंदा पानी व उसके ग्रहण से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए वाटर प्यूरिफायर का उपयोग घर-घर में हो। बारिश का ध्यान रखते हुए जल निकासी की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
वायु प्रदूषण
फैक्ट्रियों, इटा भटटी व विभिन्न प्रकार के गाड़ियों से निकलने वाले धुएं व किसी भी प्रकार के जलाए जाने वाले पदार्थ के धूएं, परमाणु व रसायनिक प्रयोग से निकलने वाले रेडिएशन आदि इसके मुख्य वजहों में शामिल है। जहरीले हवा से सांस की बीमारियां हो जात है।नियंत्रण के उपाय
जनजीवन से दूर फैक्ट्रियां, ईटा भट्टी या धुएं निकालने वाली चीजें प्रयोग की जानी चाहिए, रसायनिक प्रयोगशाला भी मानव के समूहों से दूर रहना चाहिए।
मगर उसका दुष्प्रभाव कम करने के लिए उस आस-पास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में पेड़-पौधे लगाई जानी चाहिए ताकि पेड़ पौधे वातावरण शुद्ध करे।
पेट्रोल या डीजल वाली गाड़ी के जगह पर सीएनजी वाली गाड़ी का उपयोग किया जाय, दिल्ली का प्रदूषण स्तर घटाने में सीएनजी गाड़ी का एक मुख्य भूमिका निभाई है। इसे उदाहरण के रूप में अन्य क्षेत्रों में भी प्रयोग किया जाना चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण
मनुष्य के अंदर एक निश्चित सीमा तक ही आवाज या वातावरण की ध्वनि ग्रहण करना ठीक समझा गया है, इससे अधिक का शोर उसके कानेन्द्रिय को नुकसान पहुंचाता है, वह बहरा हो सकता है।ट्रेन की आवाज, गाड़ियों का हार्न, लाउडस्पीकर का अधिक तेज बजना, कान में म्युजिक के लिए मोबाइल का लीड अधिक देर तक रखना आदि मनुष्य के सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है।
उपाय
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए सभी ध्वनि पैदा करने वाले गाड़ी या उपकरणों का एक सीमा नियत किया जाना चाहिए, और इसका पालन नहीं करने पर दंड या जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए।
कुलमिलाकर, पर्यावरण से तो जन-जन का संबंध है, स्वच्छ पर्यावरण होने पर स्वच्छ जमीन, अन्न, जल और वायु तीनों ही मिलेंगे और ये स्वच्छता व्यक्ति के विकास में सकारात्मक भूमिका निभाएगा।
मगर पर्यावरण स्वच्छ रखना सिर्फ सरकारी स्तर पर ही जरूरी नहीं बल्कि यह व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर भी जरूरी है। इस भूमिका में महिला की एक महŸवपूर्ण भूमिका हो सकती है। अगर स्वच्छ घर, साफ भोजन और स्वच्छ हवा मिलेगा तो ना केवल अगला पीढ़ी स्वस्थ पैदा होगा बल्कि मां के रूप में महिला एक महŸवपूर्ण भूमिका निभा सकती है। चूंकि प्राथमिक गुरू मां ही होती है, तो वह अपने बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बना सकती है, बता सकती है कि स्वच्छता कितना जरूरी है, मां अपने आस-पास क्षेत्र में पेड़ लगाए व अपने बच्चों को भी लगाना सिखाए, साथ ही ना केवल घर बल्कि अपने आस-पास के क्षेत्र को भी गंदा करने से मना करे।
समाजिक तौर पर ना केवल घर का सदस्य अपने घर को साफ रखे बल्कि अपने सामने के बाहरी क्षेत्र को भी साफ रखे, साथ ही अपने आस पड़ोस को भी गंदा करते हुए देखे तो मना करे। इसके अतिरिक्त अपने अपने क्षेत्र में क्षेत्रवासी मिलकर कुछ आदमी अपने क्षेत्र के रोड व नालियां साफ रखने के लिए रखे व सामूहिक रूप से इस हेतु मूल्य प्रदान करे, इससे क्षेत्र भी साफ रहेगा और किसी एक पर भार भी नहीं पड़ेगा।
पर्यावरण साफ रहने से कितने सारे फायदे होते हैं और यह क्यों जरूरी है, इस हेतु जगह-जगह जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया जाए।
सामाजिक कार्यकर्Ÿाा, सामाजिक विचारक व लेखक का भी दायिŸव कि इस हेतु लोगों को जागरूक करें और सरकार पर भी दवाब बनाए कि जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए, ऐसे चीज का प्रयोग बंद किया जाय और उसका विकल्प तैयार किया जाए।
स्वच्छ पर्यावरण में ही स्वस्थ मानव का विकास संभव है और इसके लिए सबका एक-एक कदम जरूरी है।
आपने बहुत अच्छा लिखा
ReplyDeleteपर्यावरण को बचाना बहुत जरुरी हैँ
Thanks VIJAY Je, isse padhne ke liye aur tariff ke liye
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