Tuesday, 16 June 2015

पीछे क्यों हो पुरुषों से -कुलीना कुमारी

पुरुष के साथ ही आयी हो तो पीछे क्यों हो पुरुषों से
बल-बुद्धि में कम नहीं हो तो आहत क्यों हो बरसों से

घर में तुम्हीं क्यों रहो
क्यों सेवा तुम्हीं करो
खुद पे निर्भर तुम भी हो
कुछ अपना तुम भी करो
अपनी क्षमता से ज्यादा विश्वास नहीं है
पराधीनता से बढ़कर अभिशाप नहीं है
आजादी तुम्हें पुकारे, थाम लो उसको हरषों से
बल-बुद्धि में कम नहीं हो तो आहत क्यों हो बरसों से

शोषण जब तुम पर हो
कमजोर न खुद को जानो
बेइज्जत जो तुम्हें करे
सिंदूर न उसको मानो
जो तुम्हें सताए
सताओ उसको तुम भी
जो तुम्हे गिराए
गिरा दो उसको तुम भी
तलवार से जो तुमको मारे, तुम मारो उसको फरसों से
बल-बुद्धि में कम नहीं हो तो आहत क्यों हो बरसों से

अगर बदलना चाहे तो
तकदीर बदल जाता है
सच पर चलने वाला तो
तस्वीर बदल देता है
पर कही कमी है तुझमें
जो फल अब तक नहीं मिला
जिसके तुम हकदार हो
वो हक अब तक नहीं मिला
कहो इन्कलाब से तुम क्यों डरो, पूछे मन मेरा अरसों से
बल-बुद्धि में कम नहीं हो तो आहत क्यो हो बरसों से

पुरुष के साथ ही आयी हो तो पीछे क्यों हो पुरुषों से
बल-बुद्धि में कम नहीं हो तो आहत क्यों हो बरसों से

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