Monday, 20 May 2013

यौनाकांक्षा और बलात्कार में संबंध --कुलीना कुमारी



पिछले महिने में घटित बलात्कार की कई घटनाएं सुर्खियों पर है, अभी तक दामिनी कांड को लेकर होने वाली चर्चाएं पूरी थमी भी नहीं थी पूर्वी दिल्ली के गांधीनगर में बलात्कार की शिकार बनी पांच साल की बच्ची के मामले ने पुनः इस विमर्श को बढ़ा दिया है कि बलात्कार बुरा है, बलात्कारी भी बुरे हैं और इस अपराध के लिए उन्हें दुर्लभतम सजा मिलनी भी चाहिए यद्यपि कम या ज्यादा सजाएं इसके लिए निर्धारित भी है, फिर भी बलात्कार रुक नहीं रहे। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार, 2011 के दौरान देश भर में 24 हजार 206 मामले दर्ज किए गए जबकि 2010 में 22 हजार 172 मामले दर्ज हुए थे अर्थात इसमें बढ़त ही होती जा रही है। इतनी बड़ी संख्या में व्यक्ति क्यों आपराधिक प्रवृŸिा का होता जा रहा है, इस पर हाय-तौबा करने के बजाय क्यों न इसकी तह की पड़ताल करें।
सवाल यह है कि व्यक्ति बलात्कारी क्यों होता है, क्यों चोरी-छिपे और कभी सरेआम भी इस क्रिया को अंजाम देता है, इसके कारण ढूंढने की एक कोशिश करें व इसका कोई हल तलाशें। बलात्कार के दो मुख्य वजह होते हैं-एक तो बदला लेने के मनोविज्ञान और दूसरा यौन आवश्यकता की पूर्त्ति।
वैसे एक मामला का आपसी दुश्मनी भी है, और उसके कई कारण है, जिसमें जर, जोरू और जमीन का मुद्दा रहता है, मतलब दोस्ती-दुश्मनी अलग चीज है। लेकिन बलात्कार के प्रमुख कारणों में शामिल है-यौन आवश्यकता। जब कोई व्यक्ति उचित तरीके से इस आवश्यकता को नहीं पूरा कर पाता तब वह गलत तरीके से एक पक्षीय, आपराधिक बनाम बलत्कृत संबंध बनाता है। यही यौन संबंध अगर प्रेमी-प्रेमिका के रूप में दो पक्षीय व दोनों की सहमति से बनाया जाता तो अपराध नहीं होता।
कोई माने या न माने, यौन आवश्यकता एक ऐसी जरूरत है जिसकी कोई कितनी भी खिल्ली उड़ा ले या इस आवश्यकता से इंकार कर ले, यह हमारे मन प्राणों में बसा है, इसी की वजह से हम पैदा होते हैं और जीते जी इसे चाहे-अनचाहे हम महसूस करते हैं। जैसे हमारे लिए भोजन-पानी की आवश्यकता है वैसे ही यौन संतुष्टि हमें जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए ताकत देता है।

लेकिन कई बार कुछ लोगों को जीवन की आपाधापी में, जिसमेें वैवाहिक आय की सीमा या उसमें होने वाली रूकावट, पारिवारिक जिम्मेदारी, कैरियर संवारने या विभिन्न परिस्थितियों की वजह से पसंदीदा यौन साथी नहीं मिल पाता जिससे सहज रूप से उनकी यौन आवश्यकता की पूर्ति हो पाती, वैसे व्यक्तियों के यौन संतुष्टि हेतु ‘मास्टरवेशन’ एक महŸवपूर्ण साधन है। हमने विभिन्न स्रोतों के माध्यम से यह सुना है कि कुछ लड़के यौन संतुष्टि के लिए इस माध्यम का उपयोग करते हैं। लेकिन ऐसा छुपाकर इसीलिए प्रयोग में आता है क्योंकि स्वयं संतुष्टि के लिए इसे स्वस्थ, उचित व उपयुक्त साधन नहीं माना जाता, जबकि चिकित्सा विज्ञान के कुछ रिसर्च के मुताबिक इस प्रक्रिया से हमारे शरीर को कोई हानि नहीं होती लेकिन भ्रामकता की वजह से कि इससे भविष्य में होने वाले यौन साथी को  संतुष्ट नहीं कर पाएगा, लोग इसके उपयोग करने से डरते हैं।
ऐसा लगता है कि एक अलग कमरे में यौन संतुष्टि के लिए किया जाने वाला प्रक्रिया चाहे वह एक वैवाहिक जोड़े के बीच हो या फिर एक अकेला व्यक्ति इस प्रक्रिया को अपनाए, दोनों ही एक समान है लेकिन हमारा समाज वैवाहिक जोड़ो को यह अधिकार देता है, और तो और बच्चों को भी यह पता होता है कि मां-बाप एक कमरे में सोते हैं तो इसका क्या मतलब है। फिर हम माता-पिता अपने ऐसे वयस्क बच्चें जो शादीशुदा नहीं या फिर जिनके यौन साथी नहीं, ‘मास्टरवेशन’ के रूप में उन्हें ऐसी प्रशिक्षण क्यों न दिलाए जो उन्हें यौनिक आवश्यकता होने की स्थिति में सेल्फ सैटिकफैक्शन की ओर ले जाए।
अगर यह काम माता-पिता नहीं कर सकते तो किसी ऐसे प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करके दी जा सकती है जहां ऐसी आवश्यकता महसूस करने वाले युवा बच्चे बेहिचक अपने प्रश्न रख सके और उनके मन में उठने वाले विभिन्न सवालों के लिए उन्हें कोई डांटे नहीं, बरगलाए नहीं, ना ही पारंपरिकता व धार्मिकता के नाम पर चरित्र का ढिंढोरा पीटा जाए, जिसका पालन करना आसान न हो और बलात्कार के रूप में कही बिस्फोट हो जाए। उन्हें सेक्स एजुकेशन के अंतर्गत यह भी बताया जाना चाहिए कि दो व्यक्तियों के बीच तभी यौन संबंध बनाया जाना चाहिए जब दोनों की सहमति हो और कैसे उचित तरीके से बनाया जाय। कई विवाहित युगल का सेक्स लाइफ सुखमय नहीं होता क्योंकि कभी महिला अपने पति के यौन संबंध से संतुष्ट नहीं होती क्योंकि उसे पति द्वारा अपनाए गए तरीके पसंद नहीं होते तो कभी पति को  पत्नी के सहयोग के तरीके पसंद नहीं होते। अतः प्रशिक्षण केंद्र में यौन शिक्षा के साथ  आत्मनिर्भर होने के महŸवपूर्ण सीख दिया जाय। न केवल पढ़-लिखकर अपने कैरियर को संवार आर्थिक रूप से सक्षम बनने के लिए प्रोत्साहन के रूप में बल्कि अविवाहित होने पर या यौन साथी के अभाव में अत्यधिक यौन आवश्यकता होने पर सेल्फ सैटिस्फैक्शन के रूप में भी।
यद्यपि इन बातों के माध्यम से हमारा कहने का यह उद्देश्य नहीं कि सभी अभिभावक अपने बच्चों को बुला-बुला कर इस विषय पर बात करें, लेकिन अगर किसी स्रोत से अभिभावक यह जानते या महसूस करते हैं कि बच्चे इस विषय पर अधिक जानकारी चाहते हैं तो किसी हेल्प लाइन की तरह ऐसे प्रशिक्षण केंद्र का नंबर अभिभावक के पास होना चाहिए ताकि वह अपने बच्चों को मुहैया करा सके।  फिर जब स्कूल में मानव के कई अंगों की जानकारी व प्रक्रिया जैसे नाक का काम सूंघना, जीभ का कार्य स्वाद जैसे जानकारी दी ही जाती है तो यौनांग के बारे में जानकारी के साथ व आवश्यकता होने पर उसकी संतुष्टि की विभिन्न प्रक्रिया से क्यों अनजान रखा जाय। ऐसा लगता है कि इस प्रशिक्षण केंद्र को स्कूली शिक्षा के साथ जोड़ देना चाहिए, तनाव प्रबंधन के रूप में। क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2011 के दौरान मुल्क में कुल 135585 व्यक्तियों ने आत्महत्या किया है जिनमें से 47746 महिलाएं थी। आत्महत्या के कुछ मुख्य कारणों में विवाह स्थगन/न होने, तलाक अथवा यौन संबंध की विफलता, अवैध संबंध, प्रेम संबंध, नाजायज गर्भ,, कौटुम्बिक व्यभिचार, बलात्कार जैसे मामले सम्मिलित है।
यद्यपि यह सच है कि पुरुषों में जितनी तेजी से यौनेच्छा उत्पन्न होती है, व इसकी अधिकाधिक आवश्यकता होने पर वह आपराधिक सा हो जाता है और बलात्कारी तक बन जाता है, महिलाएं ऐसा नहीं करती। इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि जब पुरुष अपने विभिन्न प्रयासों के माध्यम से उचित तरीके से यौन साथी नहीं प्राप्त कर पाता तो आस-पास में दिखने या रहने वाली किसी लड़की के बलात्कार-यौन पर हमला करता है और उससे अपनी संतुष्टि पाता है। कौटुम्बिक व्यभिचार या परिचित के साथ किया जाने वाला बलात्कार इसी तरह के श्रेणी में शामिल होते हैं। बलात्कार के आंकड़े बताते हैं कि हर चार में से तीन बलात्कार विभिन्न प्रकार के रिश्तेदार व परिचित के द्वारा अंजाम दिए जाते हैं। वैसे इस संदर्भ में कुछ लोगों का कहना यह भी है कि नशा के वजह से भी व्यक्ति बलात्कार करता है जबकि दूसरी बातें नशा से जुड़ी कही जाती और सुनी जाती है कि नशा में व्यक्ति ढोंग नहीं करता, वह तो वही करता है जो चाहता है।
कुछ लोग इसे कपड़े को दोषी मानते हैं लेकिन बच्चों से लेकर बूढों तक के साथ होने बलात्कार इस दोष को झूठ साबित करता है। सच्चाई तो व्यक्तियों में पनपने वाला यौन आवश्यकता है। कालिदास से लेकर वात्सायन तक ने भी इस आवश्यकता पर अपनी कलम चलाई है। आज भी सार्वजनिक और ऐतिहासिक स्थलों पर लगाया व सजाया जाने वाला स्त्री-पुरुष के नंगी तस्वीरें व मूर्तियां क्या इसी यौन आवश्यकता के तरफ इंगित नहीं करता। यह एक ऐसे संकेत है कि एक तरफ तो भारतीयता के नाम पर धार्मिकता व परंपरा के साथ विभिन्न प्रकार के साज-सज्जा से तो लैस दिखता है, वही दूसरी तरफ वह इन सभी आडंबरों से दूर होकर मौका मिलते ही किसी चौथी दुनिया में खोना चाहता है।
यह भी कैसा मजाक है कि कौमार्य व्रत का पालन सिर्फ लड़की के लिए जरूरी माना जाता है, इस कौमार्य को किसी लड़के द्वारा खराब न कर दिया जाय, इसीलिए उसे बाहर आने-जाने से रोका-टोका जाता है। जबकि लड़के को खुली छूट दिया जाता हैं कि वह कुछ भी कर ले कोई फर्क नहीं पड़ता, उसके लिए ब्रह्मचर्य का पालन जरूरी नहीं माना जाता। पारिवारिक परंपरा के रूप में चलने वाला यही सोच लड़के को सांड़ अर्थात नियंत्रण से बाहर और लड़की को गाय अर्थात कोई भी खूंसेट लें जैसी कमजोर छवि बनाता है। लड़की को खाने-पीने, आने-जाने व शिक्षा-दीक्षा जैसी जरूरी मूल अधिकार से वंचित रखना व लड़का को अत्यधिक सुविधा व अधिकार देने से भी बलात्कार जैसे अपराध को बढ़ावा मिलता है। यहां सुविधाओं व अधिकारों के दुरुपयोग से किया जाने वाला बलात्कार को यौन आवश्यकता की वजह से किया जाने वाला बलात्कार के रूप में नहीं देखा जा सकता है। दोनों अलग चीज है।
जबकि सच यह है कि  यौन अधिकार व यौन आवश्यकता पुरुष और महिला दोनों को ही होती है। स्त्री-पुरुष न केवल एक-दूसरे के पूरक है बल्कि मानव सृजन के आधार भी। वे एक-दूजे के बिना जी नहीं सकते। सभी स्त्रियों को अपने जैसी अन्य स्त्रियों के अलावा अपने पुरुष रिश्तेदारों से भी लगाव होता है, चाहे वह पिता-भाई के रूप में हो या फिर पति-पुत्र के रूप में। पुरुष भी महिलाओं से बैर करके जी नहीं सकता, फिर जननी से बैर करना मतलब अपने मूल से कटना। अर्थात स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के साथ, एक-दूसरे के सहयोग से व एक-दूसरे के लिए जी रहे हैं तभी दुनिया कायम है।
संबंधों में सबसे मजबूत, आवश्यक व आकर्षक संबंध माना जाता है-पति-पत्नी बनाम प्रेमी-प्रेमिका के बीच पनपने वाला संबंध। यह संबंध दो वजहों से महŸवपूर्ण है। एक तो यह संबंध जन्मजात नहीं होता अर्थात लड़का-लड़की या उसके अभिभावक उसे निर्धारित करते हैं-वैवाहिक जोड़ी के रूप में। जबकि प्रेमी-प्रेमिका के रूप में व्यक्ति इसे अपनी जरूरत या पसंदगी के रूप में चुनता है। इस संबंध के महŸवपूर्ण होने के सबसे बड़ी वजह है-यह मनुष्य के यौन आवश्यकता को संतुष्ट करता है जो कि मनुष्य के जीवन का एक महŸवपूर्ण भाग है।
अगर ये सच नहीं होता तो लड़का-लड़की के बीच पनपने वाला प्रेम संबंध, अवैध संबंध नहीं बनता। उदाहरणस्वरूप ही सही विवाह से पूर्व, विवाहेŸार संबंध भी आपसी सहमति से कुछ लोगों में बनते रहे हैं, एकल महिला-पुरुष को भी यौन साथी की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन विभिन्न परिस्थितियों की वजह से ऐसे महिला-पुरुष जिन्हें यौन साथी उपलब्ध न हो पाए, उन्हें यौन संतुष्टि के लिए दूसरा माध्यम ‘मास्टरवेशन’ के रूप में अपनाना चाहिए। यह स्वयं संतुष्टि का एक उचित हल हो सकता है। फिर अगर यह अतिरेक यौन आवश्यकता के वजह से बलात्कार के अपराध को रोक सके तो निश्चित ही समुचित समाधान के रूप मंे उभर सकता है।
यह समाधान स्त्री-पुरुष दोनों के लिए अच्छा है। बलात्कार का आरोपी किसी का महिला का भाई, पुत्र या पति हो सकता है, कोई महिला नहीं चाहेगी कि उसका रिश्तेदार ऐसा अपराध करे और इसकी सजा स्वरूप कानूनी दंड प्राप्त करें। पुरुष उचित व सही तरीके से जीने की कला सीखकर न केवल यौन अपराध से बच सकता है बल्कि यौन साथी के अभाव में भी यौन संतुष्टि प्राप्त कर स्वस्थ जीवन जी सकता है। उन महिलाओं के लिए भी यह लाभदायक हो सकती है जो अविवाहित है या फिर जिनके पति साथ नहीं है, एकल जीवन जीते हुए यौन संतुष्टि के अभाव में तनावग्रस्त होकर जी रही है, ऐसी महिलाएं ‘मास्टरबेशन’ के माध्यम से खुद को यौन संतुष्ट रख सकती है और खुशनुमा जीवन जी सकती है। सेल्फ सटिफैक्शन के माध्यम से अवैध संबंधों से भी बचा जा सकता है। इसके बारे में विभिन्न स्रोतों के जरिये लोगों में आवश्यक व स्वस्थ प्रशिक्षण के द्वारा जागरूकता बढ़ायी जा सकती है। अतः बलात्कार जैसी जघन्य समस्या के मूल में झांककर क्यों न हम एक बार इस तरफ भी पुनर्विचार करें।


























2 comments:

  1. मैडम आप बहुत अच्छा लिखती हैं! बहुत खुलकर लिखने का साहस भी आप में है, जो बहुत कम महिलाओं में देखा जाता है! आज के समय में इस प्रकार की मानसिकता के लेखन की जरूरत है! मेरी ओर से बधाई स्वीकार करें!
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
    0982850266-,-085619-55619--

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    1. प्ुारुषोŸाम जी, हमारी रचना पर आपकी टिपण्णी पढ़ी, अच्छा लगा। साथ ही मैंने आपके कुछ ब्लाग्स भी देखे। सामाजिक सोच पर आपका भी अच्छा प्रयास है।
      सधन्यवाद
      -कुलीना कुमारी

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