अन्य वर्ष के तरह वर्ष 2012 में भी जेंडर भेदभाव की वजह से देश भर में हजारों महिलाएं अत्याचार व असमानता की बलिवेदी पर जीने को मजबूर हुई लेकिन वर्ष के खतम होते-होते 16 दिसंबर को होने वाली दामिनी कांड ने जैसे पूरे समाज व देश को झकझोर दिया, स्त्री-पुरुष, बच्चे जैसे सभी कह उठे, अब और नहीं, अब ऐसे तो हर्गिज नहीं। अत्याचार व बलात्कार दामिनी से पहले भी और लड़कियों की हुई, उसके बाद भी हो रही है, लेकिन विरोध के स्वर बढ़ गए हैं। दामिनी का बलिदान व्यर्थ न गया, दामिनी के अभिभावक के साथ अन्य अभिभावक भी सुर में सुर मिलाकर कह उठे, जैसा दामिनी के साथ हुआ, वैसा किसी और बेटी, दूसरी बेटी के साथ न हो। जनसमूह का आक्रोश देखकर सरकार सोचने पर मजबूर हुई व न्यायमूर्त्ति वर्मा सुझाव समिति गठित की गई।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी महिलाओं के हित में कुछ मूलभूत सुधारात्मक फैसला लिए। उसके महŸवपूर्ण फैसलों मंे शामिल हैं: कोई भी अस्पताल, चाहे वह सरकारी हो या निजी, आपराधिक वारदात या किसी दुर्घटना के शिकार व्यक्ति और बलात्कार-पीड़ित को तुरंत इलाज देने से इंकार नहीं कर सकता। अदालत का कहना है कि ऐसे मामलों में प्राथमिक उपचार मुहैया कराने के साथ-साथ पीड़िता को घटनास्थल के सबसे करीबी अस्पताल में पहुंचाया जाए, ऐसी स्थिति में न क्षेत्र के बंटवारे पर उलझा जाय और न कानूनी कागजात पर, कानूनी औपचारिकताएं, पीड़ित के सामान्य स्थिति में आने के बाद पूरी की जा सकती है।
गौरतलब है कि सामूहिक बलात्कार की शिकार दामिनी को बचाया जा सकता था, अगर काफी देर तक वहां पहुंची पुलिस क्षेत्र के बंटवारे व कानूनी औपचारिकता में नहीं फंसती, जब-तब ऐसे मामले सामने आते हैं, जब डॉक्टर कानूनी औपचारिकता बिना पूरे हुए इलाज करने से मना कर देते हैं, व इस वजह से बहुत सारे लोगों की जान चली जाती है जिनको कि समय पर इलाज मिलने से बचाया जा सकता है। अर्थात उच्च न्यायालय ने दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के लिए इलाज के हक संबंधी फैसले लिए बल्कि उसके प्रचार-प्रसार पर भी जोर दे रहा है।
आपराधिक कानून में संशोधन अध्यादेश पर केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इसे मंजूरी दे दी। अब बलात्कार के बाद अगर पीड़ित महिला की मौत हो जाती है तो दोषी व्यक्ति को मौत की सजा दी जा सकती है। इस अध्यादेश में बलात्कार शब्द की बजाय यौन उत्पीड़न शब्द का प्रयोग किया गया है ताकि महिलाओं के खिलाफ सभी तरह के यौन अपराधों की परिभाषा को विस्तार दिया जा सके। अध्यादेश में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड संहिता प्रक्रिया (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन का प्रावधान है। इसमें महिलाओं का पीछा करने, ताक-झांक, तेजाब फेंककर हमला करने, अभद्र भाव भंगिमा यथा शब्दों और अनुचित तरीके से स्पर्श करने को लेकर सजा बढ़ाने का प्रावधान है।
उपरोक्त कानूनी हितों के विस्तार के लिए महिला की सुरक्षा व अधिकार के लिए देशव्यापी महिला हेल्प लाइन शुरू करने की बात की गई, इस हेल्पलाइन को ऐसा बनाया जा रहा है कि देश में कही भी मुश्किल में आई महिला को पुलिस और डॉक्टर जल्द उपलब्ध हो सकें। यह हेल्पलाइन शिकायत सुनने के साथ-साथ मौके पर मदद भी पहुंचाएगी। मदद पहुंचाने के लिए जो भी धनराशि खर्च होगी, उसे महिला व बाल विकास मंत्रालय वहन करेगा। इसके अलावा उन 100 जिलों में वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर भी खोले जाने हैं जहां महिलाओं के साथ ज्यादा अपराध होते हैं। ये सेंटर महिलाओं के इलाज के साथ-साथ बलात्कार पीड़ित और अन्य तरह से सताई गई महिलाओं की मानसिक दशा सुधारने का काम करेंगे, ऐसे सेंटर जिला अस्पतालों में खुलेंगे और सीधे जिलाधीश की निगरानी में काम करेंगे।
इस सबके बाद बात महिलाओं के लिए बजट की आती है, पिछले साल 2012-2013 में जेंडर बजट के रूप में 88,142.80 करोड़ रूपए मिले लेकिन इस वर्ष 2013-2014 में 97,234 करोड़ रूपये दिए जाने की बात की गई है।
इस वर्ष समेकित बाल विकास सेवा के लिए सरकार 17,000 करोड़ रूपये देने जा रही है, जो पूरे देश में चल रही समेकित बाल विकास सेवा योजना के 7005 केंद्रों और 13.19 लाख आंगनबाड़ियों के जरिये खर्च किया जाएगा। महापंजीयक के आंकड़े 2011 के अनुसार, भारत में अभी भी शिशु मृत्य दर प्रति हजार 44 है, रिपोर्ट 2010 के अनुसार, नवजात मृत्य दर प्रति हजार 33 है व रिपोर्ट 2007-08 के अनुसार, मातृत्य मृत्य दर एक लाख प्रति जीवित जन्मों पर 212 है, इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार महिलाओं व बच्चों का कुपोषण दूर करने पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है।
इसके अलावा देश की आधी आबादी का ध्यान रखते हुए देश में पहली बार महिलाओं के लिए अलग से सरकारी बैंक खोले जाने पर जोर दिया गया है जिसमें कर्मचारी और ग्राहक अधिकतर महिलाएं ही होंगी तथा महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्भया कोष भी स्थापित किया जाएगा। आम बजट में महिला बैंक और निर्भया कोष के लिए एक-एक हजार करोड़ रूपए का प्रावधान है। इसके अलावा एकल व विधवा महिलाओं की मजबूती के लिए महिला व बाल विकास मंत्रालय को अतिरिक्त 200 करोड़ रुपये की राशि दी जा रही है।
अतः महिला दिवस के उपलक्ष्य पर महिला उत्सव मनाने का इस बार हम महिलाओं के पास काफी कारण है। न्यायालय द्वारा इलाज के हक की बात कर न केवल पीड़ित महिलाओं को तत्काल राहत पहुंचाने की उम्मीद बढ़ गई है बल्कि आम दुर्घटनाग्रस्त जनता को भी उससे राहत मिलेगी।
महिलाओं के लिए देशव्यापी हेल्पलाइन बन जाने के बाद न केवल उसे तत्काल मदद मिल सकने की संभावना बढ़ेगी बल्कि उसके लिए एक दरवाजे बढ़ सकते हैं जो उसे तत्काल उपचार के साथ-साथ मानसिक व कानूनी सहायता मिल सकेगी। वर्तमान में महिलाओं की समस्या एक प्रमुख वजह उसके जरूरत पर रास्तों का बंद होना है, अगर महिला कुंवारी है और अगर मायके में शोषण हो तो वह किससे शिकायत करें, शाादीशुदा होने की परिस्थिति में ससुराल में समस्याएं होने पर मायके वाले प्रायः समर्थन करने को तैयार नहीं होते, अतः महिला हेल्पलाइन विवाहित व अविवाहित दोनों तरह की महिलाओं को ही सुरक्षा प्रदान कर सकने में सक्षम होगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
महिलाओं के लिए बजट में एकल, विधवा व पिछड़ी महिलाओं के लिए सहायता व पेंशन योजना की बात की गई है जो कि बहुत ही अच्छा विचार है, ऐसे महिलाओं के आर्थिक सुदृढ़ीकरण करने से न केवल ऐसी महिलाओं की स्थिति में सुधार की गुंजाइश बढ़ेगी बल्कि जो सबसे बड़ा परिवर्तन होने की उम्मीद लगती है, वह है पति के अत्याचार सहने की मजबूरी की समाप्ति का। महिलाओं के पास अगर ये विश्वास हो जाय कि पति के बिना भी उसका व उसके बच्चे का जीवन खतम न होगा, उसे आर्थिक सुरक्षा मिलेगी तो निश्चित ही उसका आत्मबल व मजबूती बढ़ेगा, फलस्वरूप महिलाओं में सकारात्मक जीवन की दिशाएं बढ़ेंगी।
पति के जिंदा रहते उससे अलग रहने वाली महिलाओं के संदर्भ में मेरा सोचना ये है कि ऐसा वैवाहिक जीवन जिसमें पति-पत्नी के लिए एक-दूसरे के प्रति सिर्फ शिकवा-शिकायत हो, प्यार व विश्वास न हो, ऐसी परिस्थिति में महिला के लिए घुट-घुटकर जीने के बजाय तलाक एक अच्छा विकल्प है। आम बजट के जरिये अगर विधवा व एकल महिलाओं के लिए आर्थिक सुदृढ़ीकरण सुनिश्चित की जाय तो सचमुच उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हो सकता है।
आम बजट में महिलाओं के लिए 1000 करोड़ रूपये का निर्भया फंड बनाने की घोषणा की गई है जो कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम आएंगी, साथ ही देश की आधी आबादी के लिए पहली बार महिलाओं के लिए अलग से बैंक खोले जाने का प्रस्ताव रखा गया है जिसमें कर्मचारी व ग्राहक अधिकतर महिलाएं ही होंगी।
महिलाओं के द्वारा, महिलाओं के लिए सार्वजनिक बैंक बनने से महिलाओं का एक बड़ा वर्ग के इसके ग्राहक बनने के रास्ते खुलेंगे। आज दिल्ली में जिस तरह से महिलाओं के लिए मेट्रो के लिए अलग से कोच बनाने से उस कोच में महिलाओं की बड़ी संख्या उस सफलता की सूचक है, इसकी पीछे की एक बड़ी वजह यह है कि पुरुषवर्ग भी अपने घर की महिलाओं को महिलाओं के बीच सुरक्षित महसूस करते हैं, व उसे अकेले निकलने पर भी निश्चिंता महसूस करते है, कुछ ऐसा ही महिला बैंक बन जाने से होने की उम्मीद है। पुरुष वर्ग अपनी महिलाओं को महिला बैंक का ग्राहक बनने से अधिक देर नहीं रोक पाएंगे, न इसका बहाना बना पाएंगे कि बैंक में कोई पुरुष अधिकारी छेड़खानी कर सकता है। फिर महिला बैंक अधिकारी भी अन्य बैंकों के तरह बैंक की मेंटेनेन्स के लिए व अपने को किसी भी बैंक से कमतर नहीं साबित करने के लिए जमीनी स्तर पर कार्य किया जाएगा। इसके तहत महिला कस्टमर बनाने हेतु कई योजनाएं लागू करनी होंगी ताकि न केवल एकाउंट खोलवाने हेतु महिलाएं प्रभावित हो बल्कि सामुदायिक स्तर पर उसके पुरुष वर्ग भी संतुष्ट हो और वे पत्नी अथवा महिला सदस्य का एकाउंट खोलवाने को तैयार हो।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की मजबूती में उसकी आर्थिक स्थिति का एक महŸवपूर्ण भूमिका होती है। फिर जैसे ही महिला का अपना बैंक खाता होगा तो वह उसको न केवल मेंटेन रखने का प्रयास करेगी, बल्कि ऐसे दूसरे महिला आगंतुक व उपभोक्ता से भी उसका परिचय बढेगा व उसे भी जागरूक कर व एक-दूसरे की सहायता से अन्य महिलाओं को भी जोड़ने में सहायक होगी।
फिर भी अगर बात बजट में महिलाओं को सिर्फ तात्कालिक रूप से रिझाने के उद्देश्य से की गई है तो भी सरकार को उसे पूरा करने हेतु तत्पर होना ही होगा। क्योंकि अपराधों व असमानता के खिलाफ बढ़ता महिलाओं का आक्रोश लोगांे ने देखा है जिसे देखते हुए सरकार द्वारा अधिक दिनों तक बरगलाया अथवा टाला न जा सकेगा।
इसके बावजूद, इन सभी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू होने में समय लग सकती है, ये भी सच हो कि उन योजनाओं को सफलतापूर्वक चलाने के लिए और अधिक बजट की आवश्यकता भी हो, तो भी हम अपने बुरी स्थिति का रोना रोए, उससे अच्छा है कि जो अच्छा हमारे लिए दिख रहा है, हम उसे प्राप्त करने की कोशिश करें व उज्ज्वल भविष्य की कामना कर अपने को आशान्वित रखें।
इसी के तहत एक और बात जो तय मुझे दिख रही है वह कि महिलाओं में बढ़ता जागरूकता व उसका विस्तृत होते दायरे को पिŸाृसŸाात्मक सŸाा द्वारा अब समेटना आसान नहीं होगा।
अपनी पहचान व महŸाा के लिए स्त्रियों के साथ-साथ हमारी बेटियां भी कदम बढ़ाना शुरु कर दिया है। न केवल अपने भाइयों के साथ शिक्षा, पालन-पोषण व उŸाराधिकार सहित हर मामले में बराबरी करने के लिए तत्पर दिख रही है, बल्कि भाइयों को अधिक व उसे कम दिए जाने पर प्रश्न भी करना शुरु कर दिया है। हम बेटियों के अपनी शक्ति की पहचान के रूप में भी बढ़ते कदम के लिए भी उत्सव मना सकते हैं।
हम महिलाओं के लिए ये भी कम खुशी मनाने की बात नहीं कि बुरी स्थिति पर रोने के बजाय हम अपने कर्Ÿाव्य के साथ-साथ अधिकार के प्रति भी जागरूक हो रहे, शोषण होने पर हम आवाज उठाना सीख रहे। हम महिलाएं अपने मुश्किलों में भी खड़े रहने की उत्कंठा व आगे बढ़ने के जीजिविषा के लिए महिला उत्सव मनाए। इस महिला दिवस पर अपने साल भर की विफलता से सीखे व सफलता के लिए अपने को गौरवान्वित महसूस करें, साथ ही कसम खाएं कि दिनोनदिन जो अलख महिलाओं में जग रही है, वो बढ़ेगी बेशक, बुझेगी तो हर्गिज नहीं।
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