Thursday, 12 April 2012

रामायण में राम, रावण और महिला अधिकार से जुड़े कुछ सवाल -कुलीना कुमारी




कुछ दिनों से यह एक चर्चा का विषय बना हुआ है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक के इतिहास विषयक पाठयक्रम से ए. के रामानुज द्वारा लिखे गए लेख ‘थ्री हंड्रेड रामायंस, फाइव एक्जांपल्स एंड थ्री थॉटस ऑन ट्रांसलेशन’ को हटाया जाना उचित था कि नहीं। इस लेख के माध्यम से रामानुज ने रामायन के संबंध में बताया है कि  भिन्न-भिन्न भाषी लोगांे के पास भिन्न-भिन्न कहानियां है जिसमें राम और सीता भी अलग-अलग तरह के है। इन बातों को रखने का मेरा उद्देश्य सिर्फ ये कहना नहीं है कि इन्हें पाठयक्रम से हटाना अनुचित था, अनुचित इसलिए क्योंकि जब भारत विविधता वाला देश है तो विभिन्न संस्क्रतियों में बताई जाने वाली इस राम और सीता की कहानी को विद्यार्थियों की जानकारी के लिए पढ़ाई जानी चाहिए थी।
मुझे उपरोक्त बातों को बताने का दूसरा व सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि जब अभी राम को लेकर बहस चल ही रही है तो रामायण की आधार सीता और कुछ अन्य महिलाओं की चर्चा कर ली जाय। बात आगे बढ़ाने से पहले एक इस प्रश्न पर भी विचार करना मुझे अनुचित नहीं लगता कि रामायण में सीता के साथ-साथ कई स्त्रियों के संघर्ष की कहानी है, अतः इसे रामकथा के बजाय स्त्री कथा के रूप में चिंहित किया जाता तो अधिक उचित होता। वैसे भी राम की महानता सीता से विवाह के बाद शुरू होती है और सीता के गुजरते ही खतम क्योंकि शायद ये कम लोगों को पता होगा कि सीता के मरने के बाद राम को सरजू नदी में डूबकर आत्महत्या करनी पड़ी थी।
अब अगर शुरुआत से रामायण के कुछ ऐसी स्त्री पात्रों पर नजर दौड़ायी जाय जिन्होंने महिला अधिकार के लिए आवाज उठायी है और जो तत्कालीन समाज में क्रांतिकारी आवाज थी, उनमें कैकेयी, शुर्पनखा तथा सीता प्रमुख है।
रामायणों में एक तरफ कैकेयी को एक विरांगना महिला के रूप में गिना जाता है क्योंकि उन्होंने एक बार यु़द्धस्थल में दशरथ के रथ की एक पहिया के कील निकल जाने पर उसके जगह अपनी ऊंगली डाल दी थी, वही दूसरी तरफ आस्था के हिसाब से कैकेयी को रामायण की खलनायिका के रूप में याद किया जाता है क्योंकि राम के वनवास का कारण उन्हें माना जाता है।
जबकि सच्चाई यह है कि राम के वनवास की वजह स्वयं दशरथ है कैकेयी नहीं क्योंकि दशरथ की कई शादियों के लिए कैकेयी दोषी नहीं थी।
वैसे भी किसी भी मां के लिए अपने बच्चों को राजगद्दी पर बिठाये जाने के लिए प्रयास करना अथवा उसके पिता के अधिकार का उसे वारिस बनाना अनुचित नहीं बल्कि उसका खुद के बच्चों के प्रति उसका प्यार हैं, कर्Ÿाव्य है और यही प्यार और कोशिश मां को और महान बनाता है।
इतना ही नहीं कैकेयी को राम के वनवास के साथ-साथ दशरथ के मौत का कारण भी माना जाता है जो कि गलत है क्योंकि अगर दशरथ के मौत का कारण किसी को माना जा सकता है तो वह स्वयं राम है। यह इसलिए कि जब राम को वनवास के दौरान पिता की बीमार होने की बात पता भी चली तो भी वे पिता से मिलने नहीं आये और कथा के अनुसार दशरथ राम के वियोग को बर्दाश्त न कर सकें व गुजर गये। (ये कैसा न्याय और दुविधा है कि जो राम किसी तीसरे के कहने पर पत्नी की पवित्रता के जांच के बाद भी अपनी पत्नी को घर से भगा सकता है वही व्यक्ति पिता के साथ-साथ अन्य गांव के लोगों के आग्रह पर भी बिमार पिता से मिलने नहीं जाता है, शायद इसलिए कि उसके पिता ने उसके छोटे भाई को राजगद्दी दे दिया था जो कि उसे बर्दाश्त नहीं था।)
अब बात करते हैं रामायण की दूसरी पात्र शुर्पनखा की जिसकी राम के संरक्षण में लक्ष्मण द्वारा नाक काटी गई थी अर्थात लक्ष्मण द्वारा शुर्पनखा का बलात्कार हुआ था लेकिन अफसोस की बात यह है कि इसके बावजूद लोग राम का गुणगान करते नहीं थकते कि क्योंकि महिलाओं का इज्जत लूटना अभी तक पुरुषों के लिए शान की बात रहती रही है, और उल्टे शुर्पनखा का नाक कटने के बाद भी इस क्रिया के लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। मुझे तो लगता है शुर्पनखा ने अगर अपनी बेइज्जती का बदला लेने की नहीं ठानी होती और स्त्री समर्थक रावण अपनी बहन के पक्ष से लड़ने के लिए नहीं खड़ा हुआ होता तो शायद राम के जानकारी में लक्ष्मण द्वारा लड़कियों के शरीर से खेलने, व लड़की की नाक कटने की बात भी कथा में नहीं आती।
मुझे तो राम नहीं रावण अधिक स्त्रीवादी और मानवतावादी लगता है, वह इसलिए कि उसने अपनी बहन के बलात्कारी को सजा दिलाने के लिए तथा अपने परिवार के सम्मान के लिए (जिसमें एक स्त्री अर्थात उसकी बहन भी शामिल थी) किसी से दुश्मनी मोल लेना उचित समझा चाहे इसके लिए वह स्वयं, उसका राजपाट व सबकुछ ही क्यों न मिट गया हो। वह राम से इसलिए भी महान है कि राम ने तो अपनी उस पत्नी के साथ भी न्याय नहीं किया जो उसके वनवास के दौरान भी उसके साथ रही, उसकी अग्नि परीक्षा भी ली इसके बाद भी किसी तीसरे के कहने पर राम ने सीता को निकाल दिया और खुद राजपाट में मगन रहे। जबकि रावण अपनी बहन की बेइज्जती के कारण मुॅह छुपाकर राजपाट में मगन नहीं हुआ, बल्कि अपराधी राम और लक्ष्मण से बदला लेने के लिए अपने विशाल सम्राज्य के साथ-साथ खुद को भी दांव पर लगा दिया। वैसे भी जीवन वही सार्थक है जो हमें सर उठाकर जीने की प्रेरणा दें, वह जीवन किस काम का जो हमें प्रायश्चित की आग में जलने पर मजबूर करे और अंततः आत्महत्या जिसकी परिणति हो। यहां मेरे हिसाब से राम से रावण इसलिए अधिक महान है क्योंकि वह जब तक जिया, सर उठाकर जिया जबकि राम प्रायश्चित की आग में ही जीते रहे। कभी पिता के मौत का कारण बनकर, कभी पत्नी को सीमारेखा में बांधने की कोशिश करने के साथ-साथ उसकी पवित्रता की जांच कर इसके बावजूद भी मन नहीं भरा तो उसे घर से बेदखल कर।
अंत में सीता के संदर्भ में कुछ और बातें रखना चाहूंगी। राम ने सीता के लिए लक्ष्मण रेखा बनायी थी उस वन में भी जहां उसके पति से बड़े सास या बुजूर्ग नहीं थे, सीता ने उस लक्ष्मण रेखा से ऊब कर अथवा उस वंदिशों से बाहर निकली और रावण द्वारा हरण कर लंका में लायी गई। (मुझे यहां भी राम से बड़ा रावण लगता है क्योंकि कथा के अनुसार रावण लंका में भी सीता से अपने प्यार का इजहार किया, वह जरूर अपने प्यार की स्वीक्रीत के लिए सीता से अनुरोध किया, लेकिन उसकी इज्जत नहीं लूटी, जबकि वन जैसे सार्वजनिक स्थान में भी राम की जानकारी में लक्ष्मण ने शुर्पनखा की इज्जत लूटी थी। यद्यपि मैं इसके पक्ष में नहीं हूं कि किसी द्वारा किए गए स्त्री अपमान के बदले दूसरे द्वारा किसी अन्य स्त्री का अपमान किया जाय या बदला लिया जाय।) कथानुसार राम द्वारा सीता को लंका से निकालने के लिए रावण पर विजय पाया गया लेकिन सीता को स्वीक्रीत के लिए पवित्रता की जांच देनी पड़ी। यहां राम द्वारा सीता के प्रति किया जाने वाला व्यवहार से लगता है कि राम ने सीता को लंका से निकालने के लिए रावण को नहीं मारा बल्कि रावण को मारना उनकी मंशा थी, सीता तो इस कार्य में एक साधन मात्र थी। राम ने तो रावण को  इसलिए मारा क्योंकि उनके हिसाब से स्त्री का बलात्कार करना राम और उनके भाई लक्ष्मण के हिसाब से पुरुष का अधिकार था जिसका विरोध ज्ञानवान रावण ने किया था, इसीलिए वह राम का लक्ष्य बना और मारा गया। अगर सचमुच राम सीता को वहां से बचाने के लिए रावण को मारे होते तो वह सीता की पवित्रता की जांच के लिए उन्हें मजबूर नहीं करते।
सीता के कष्ट पुनः तब शुरू होते हैं जब राम के आयोध्या वापस आने के बाद किसी तीसरे व्यक्ति के कहने पर राम सीता को लक्ष्मण के सहयोग से जंगल में अकेला छोड़ कर आ जाते हैं। यहां गर्भवती सीता दो बच्चें को जन्म देती है और कई वर्ष बच्चों के साथ जंगल में ही निवास करती है।
राम को सीता की तब सुध होती है जब अश्वमेघ यज्ञ के दौरान उन्हें पता चलता है कि लक्षमण और हनुमान सहित कई वीर सेनापतियों को दो बच्चों ने परास्त कर दिया है और अब परास्त होने की स्वयं राम की बारी थी। यहां भी राम सीता के लिए नहीं बल्कि महान वीर अपने दो बच्चों को अपनाने के लिए सीता से मुखातिब हुए क्योंकि उन्हें अश्वमेघ यज्ञ को जीतना जो था।  पुरुषवादी सŸाा के बीच यहां भी सीता की जीत नहीं हुई। राम द्वारा सीता के बच्चे ले लिए जाने के बाद सीता जीवित न रह सकी। (वैसे सार्वजनिक रूप से सिर्फ सीता के पास ही धरती फटने की बात अतिशियोक्ति लगती है, या तो सीता केे बच्चे छीन लिए जाने पर सीता द्वारा विरोध किया गया हो जिसके फलस्वरूप सीता को सार्वजनिक रूप से जमीन में गाड़ दिया गया हो या फिर अपने बच्चों के वियोग में सीता खुद ही मर गई हो।)
कुलमिलाकर रामायण एक ऐसी महŸवपूर्ण गं्रथ है जिसमें सीता, कैकेयी व शुर्पनखा के अलावा भी कई स्त्रियों की संघर्ष और अधिकार की कहानी है जिसको गंभीरता से अध्ययन करने की जरूरत है। हमें न तो रावण से अनुराग है और ना ही राम से वैर। हम तो चाहते हैं कि इतिहास में हो या वर्तमान में जिस स्त्री ने भी संघर्ष कर अपनी एक पहचान बनाने की कोशिश की हो या फिर स्त्री अधिकार का प्रश्न उठाकर अथवा उसकी प्राप्ति के लिए लड़ाई लड़ा है, वे हम महिलाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत है और वह पुरुष भी जो हम महिलाओं की लड़ाई में योगदान दिया है, वे हमारे लिए सराहनीय है चाहे वह रावण ही कोई न हो। एक यह प्रकरण भी रावण और उसके  तत्कालीन राज्य लंका की स्त्रीवादी समर्थन को मजबूत बनाता है कि आधुनिक इतिहास में भी पूरी दुनिया में पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीलंका से ही सीरीमाओ भंडार नायके हुई है।
मुझे तो आश्चर्य होता है कि लोग राम राज्य की कल्पना क्यों करते हैं, क्यांेकि राम न तो अच्छे पुत्र बन सके न पति  और न ही पिता न ही अच्छा राजा। अच्छे पुत्र इसीलिए नहीं बन सके क्योंकि बीमार पिता से मिलने नहीं गये जिस कारण उनके पिता दशरथ की मौत हो गई।
राम अच्छे पति इसलिए नहीं बन सकें क्योंकि जिस सीता ने वनवास अर्थात पति के विपŸिा के समय भी राम का साथ न छोड़ी, उस पत्नी को राम राजगद्दी मिलते ही छोड़ दिया। वे अच्छे पिता भी इसलिए भी नहीं बन सके क्योंकि खुद अमीरी में वे जीते रहे, और अपने बच्चों को दुखों के साथ जंगल में जीने पर मजबूर किया। रामराज्य में जब स्वयं राम द्वारा पिता की स्वास्थ्य की अनदेखी, पत्नी और बच्चे के प्रति कर्Ÿाव्यहीनता और राम के समक्ष ही किसी अन्य स्त्री शुर्पनखा के नाक काटने अथवा उसकी इज्जत लूटने वा शारीरिक आघात पहुंचाने जैसी घटनाएं होती है तो यह रामराज्य वाला सोच कैसे आदर्श हो सकता है। ना ही अच्छे राजा के रूप में भी कोई ऐसा निर्णय नहीं दिखाई देता जिसे इतिहास में कोट किया जाय। वैसे भी जो  व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चे, घर तथा परिवार के प्रति जिम्मेवार नहीं हो सकता वह अच्छा राजा कैसे बन सकता है? राजा के रूप में सरजू नदी में डूबकर आत्महत्या करने का फैसला क्या रामराज्य का उदाहरण हो सकता है।
आखिर में मुझे यही लगता है कि हम आने वाली पीढ़ी को तर्कयुक्त होकर कर्Ÿाव्यपथ पर अग्रसर होना सिखाये न कि अंधी आस्था में पड़कर किसी को पूजने की परंपरात्मक और घातक जीने के दौड़ में शामिल होना।

10 comments:

  1. इस पोस्ट पर मैंने जो टिप्पणियाँ की थी शायद स्पैम में चली गई हैं कृप्या उन्हें प्रकाशित करें.धन्यवाद!

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    1. राजन जी, मैंने 19 जून को दिया आपका कमेंटस पढ़ा। सबसे पहले मैं आपको यह बता दूं कि एक ही प्रसंग पर हमारे-आपके या किसी की भी अलग प्रतिक्रियाएं हो सकती है। राजा दषरथ द्वारा भरत की राजगद्यी दिए जाने पर राम का घर छोड़कर वन चले जाना मेरे हिसाब से राम का पिता के प्रति पुत्रभक्ति नहीं बल्कि गुस्सा था, कैकेयी का अपने बेटे भरत के लिए राजगद्यी की मांग करना और भरत का राजगद्यी पर बैठना दोनों का ही मूल अधिकार था। क्योंकि कोई भी मां अपने बच्चे को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करती है और भरत दषरथ की दूसरी पत्नी का बेटा था, इसमें भरत का कोई दोश नहीं था। पिता के प्रति राम की पुत्रभक्ति तब दिखती जब भरत की राजगद्यी की बात जानते हुए भी बूढे पिता को छोड़कर वे जंगल नहीं जाते और पिता की सेवा करते रहते। जहां तक आपने राम के पक्ष में जनता के होने की बात कही है तो क्या ये सच नहीं कि आज के अपने प्रजातंत्र देष में जनता की कितनी चलती है तो उस समय जब राजतंत्र था तो प्रजा की कितनी चलती होगी। वैसे रामराज्य में प्रजा में से किसी एक के आवाज उठाने पर राम ने सीता को अग्नि परीक्षा लिए जाने के बावजूद घर से निकाल दिया था, ये राम का प्रजाभक्ति नहीं बल्कि स्त्रीविरोधी रवैया का परिणाम था क्योंकि उन्हें प्रजा से इतनी ही भक्ति थी तो प्रजा की बात मानकर कोई और अच्छे कार्य करने का प्रसंग क्यों नहीं नजर आता।.कुलीना

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  3. कुलीना जी,शायद कोई तकनीकी समस्या रही होगी इसलिए दोनों टिप्पणियाँ फिर से पोस्ट कर रहा हूँ आप चाहें तो जवाब दे सकती हैं-
    लेख की कुछ बातों से सहमत हूँ पर कुछ से नहीं.राम की महानता से मैं भी कोई खास प्रभावित नहीं लेकिन राम को कठघरे में खडा करने के लिए आपने तथ्यों को बिल्कुल ही ताक पर रख दिया हैं.राम पर आरोप तो कईयों ने लगाए लेकिन ऐसे नहीं जैसे आपने.आपने कहा कि राम इसलिए दशरथ से मिलने नहीं आए क्योंकि वे छोटे भाई को राजगद्दी दिए जाने से नाराज थे.जबकि सच तो ये हैं कि वो किसी भी सूरत में 'रघुकुल रीत' नहीं तोडना चाहते थे और अपने पिता को इसका अपयश लेने से रोकना चाहते थे.जिस राम ने रावण को मारा और राज्य विभीषण को दे दिया,बालि को मारा और राज्य सुग्रीव को दे दिया वह आपको सत्ता का लालची नजर आ रहा हैं? यदि ऐसा होता तो राम को किस बात की परवाह थी वो वन में जाते ही क्यों जबकि तब प्राजा भी उनके साथ थी और उन्हें राजा के रूप में देखना चाहती थी लेकिन राम ने पिता और अपने कुल का मान रखने के लिए वनवास चुना ये भी उनके लिए किसी परीक्षा से कम न था और इसके बाद भी माता कैकयी के लिए उनके मन में सम्मान जरा भी कम नहीं हुआ और आप कहती हैं कि राम अच्छे बेटे न हो सके?हाँ रावण और कैकयी के बारे में जो आपने कहा उससे मैं सहमत हूँ.

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  4. पहले मैं भी आपकी तरह
    ही सोचता था लेकिन इस बारे
    में अब थोडी और
    जानकारी मिलने के बाद
    मेरी सोच बदल गई
    हैं.शूर्पनखा की सचमुच नाक
    ही काटी गई थी और इसीलिए
    उसका नाम शूर्पनखा पडा न
    कि उसके साथ बलात्कार
    किया गया और आप खुद
    सोचिए उस समय वहाँ पर
    सीता भी मौजूद थी वो सीत
    जिसने रावण के सामने भी अपने
    स्वाभिमान और स्त्रीत्व
    को आँच न आने
    दी क्या ऐसी स्वाभिमानी
    स्त्री अपने सामने
    किसी दूसरी स्त्री का
    बलात्कार होते हुए देख सकती है?
    फिर भले ही ऐसा करने
    वाला उसका देवर ही क्यों न
    हो.और अगर फिर भी सीता ने
    राम और लक्षमण को कुछ न
    कहा तो फिर आपको किस तर्क
    से
    सीता क्रांतिकारी स्त्री नजर
    आ रही हैं बल्कि तब
    तो आपको राम से पहले
    सीता को ही कठघरे में
    खडा करना पडेगा.और
    शूर्पनखा कोई साधारण
    स्त्री नहीं थी बल्कि एक
    राक्षसी थी और राम भी इस
    बात को जानते थे अतः उन्होने
    उसे टालने की भी खूब कोशिश
    की लेकिन अंत में लक्ष्मण को ये
    आदेश देना पडा की उस पर
    प्रहार करे क्योंकि शूर्पनखा ने
    अचानक सीता को मारने के
    लिए उस पर हमला कर
    दिया था.अतः सीता के
    बचाव में उन्होने
    ऐसा किया रामायण
    भी यही कहती हैं.अब आप
    क्या चाहती हैं कि सीता पर
    हमला करने वाली एक
    राक्षसी को स्त्री
    स्वाभिमान के प्रतीक के रुप में
    स्थापित किया जाए और
    सीता को रावण
    तथा शूर्पनखा जैसों से बचाने
    वाले राम को खलनायक
    बनाया जाए?
    मेरे पास
    आपकी बाकी बातों का भी
    जवाब हैं लेकिन पहले कृप्या इन
    टिप्पणियों को प्रकाशित करें
    और ये वर्ड वेरिफिकेशन
    भी हटा दें.धन्यवाद!

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    1. राजन जी, शूर्पनखा के संबंध में मेरा यह तर्क की उसकी इज्जत लूटी गई थी, मैं इससे सहमत इसलिए ही हूं कि नाक कटना का मतलब इज्जत लूटना होता है और किसी स्त्री का इज्जत लूटना सामाजिक संदर्भ में किसे कहते हैं, इसे बताने की जरूरत नहीं। नाक कटना का मतलब इज्जत लूटना ही इसलिए भी माना जाता है कि आज भी किसी बात को लेकर अपयश होने पर बोलचाल में कहा जाता है कि उसकी नाक कट गई।
      जहां तक सीता के समक्ष इज्जत लूटे जाने की बात को लेकर आपका सवाल था तो इस संदर्भ में मेरा ये कहना है कि जब जंगल में भी सीता को एक घर व आंगन में कैद कर दिया गया था अर्थात लक्ष्मण रेखा खींच दिया गया था तो जंगल के बहुत बड़े क्षेत्र में क्या होनी, अनहोनी हो रही है, इसकी सीता को खबर क्यों होगी, अगर होएगी ही तो सीता को चलती ही क्यों जब स्वयं सीता ही कैदी सा जीवन जीने को अभिशप्त हो।
      तीसरी बात, स्त्री को स्त्री रहने दीजिए, उसे देवी या राक्षसी मत बनाइए। सदियों से स्त्रियों के लिए इस्तेमाल देवी या राक्षसी की उपाधि ने नारी जीवन को मुश्किल से मुश्किलतर बनाया है और मनुष्य की न्यूनतम अधिकार से वंचित किया है। अतः नारी को नारी रहने दीजिए और उसे भी स्वाभाविक रूप से जीने दीजिए।

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  5. राजन जी, शूर्पनखा के संबंध में मेरा यह तर्क की उसकी इज्जत लूटी गई थी, मैं इससे सहमत इसलिए ही हूं कि नाक कटना का मतलब इज्जत लूटना होता है और किसी स्त्री का इज्जत लूटना सामाजिक संदर्भ में किसे कहते हैं, इसे बताने की जरूरत नहीं। नाक कटना का मतलब इज्जत लूटना ही इसलिए भी माना जाता है कि आज भी किसी बात को लेकर अपयश होने पर बोलचाल में कहा जाता है कि उसकी नाक कट गई।
    जहां तक सीता के समक्ष इज्जत लूटे जाने की बात को लेकर आपका सवाल था तो इस संदर्भ में मेरा ये कहना है कि जब जंगल में भी सीता को एक घर व आंगन में कैद कर दिया गया था अर्थात लक्ष्मण रेखा खींच दिया गया था तो जंगल के बहुत बड़े क्षेत्र में क्या होनी, अनहोनी हो रही है, इसकी सीता को खबर क्यों होगी, अगर होएगी ही तो सीता को चलती ही क्यों जब स्वयं सीता ही कैदी सा जीवन जीने को अभिशप्त हो।
    तीसरी बात, स्त्री को स्त्री रहने दीजिए, उसे देवी या राक्षसी मत बनाइए। सदियों से स्त्रियों के लिए इस्तेमाल देवी या राक्षसी की उपाधि ने नारी जीवन को मुश्किल से मुश्किलतर बनाया है और मनुष्य की न्यूनतम अधिकार से वंचित किया है। अतः नारी को नारी रहने दीजिए और उसे भी स्वाभाविक रूप से जीने दीजिए।

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  6. कुलीना जी, आपने २६ अगस्त वाले पोस्ट में लिखा है कि राज्यगद्दी पर बैठना भरत का अधिकार था, ये आपने किस शास्त्र के आधार पर कहा है,चूँकि वह दशरथ का कैकेयी के गर्भ से उत्पन्न दूसरा पुत्र था अतः राज्यगद्दी पर उसका अधिकार कैसे हो सकता है, अभी तो बहुत सवाल बाकी हैं,५ मई के बाद आपसे अच्छी तरह बात होगी।

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  7. har mahila chahti hain ki usske bchche hi pita ka varish aur usske gaddi k adhikari ho...isske hisab se कैकेयी bhee apne bchche k adhikar k prti agr sjg thee to glt nhee...yah to har maa aur har bchche ka adhikar me shamil ki usse hi pita k bad rajgddi mile..bap kai shadi kr le aur kai bchche paida kar le..ussme kisi anya bchche ka dosh to nhee

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  8. har mahila chahti hain ki usske bchche hi pita ka varish aur usske gaddi k adhikari ho...isske hisab se कैकेयी bhee apne bchche k adhikar k prti agr sjg thee to glt nhee...yah to har maa aur har bchche ka adhikar me shamil ki usse hi pita k bad rajgddi mile..bap kai shadi kr le aur kai bchche paida kar le..ussme kisi anya bchche ka dosh to nhee

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