प्रेम संबंध और सशक्तिकरण महिलाओं के संदर्भ में एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इतिहास ही नहीं वर्तमान के भी कुछ प्रसंग हमें बताते हैं कि प्यार का रिश्ता मनुष्य के जीवन को किस तरह प्रभावित करता है, प्यार का सकारात्मक व स्वस्थ रिश्ता शारीरिक व मानसिक रूप से भी मजबूती की ओर ले जा सकता है। प्यार की इस क्षमता को पहचान कर व महसूस कर कितने ही लोग मुश्किल से मुश्किल कठिनाइयों को भी पार करने के लिए सहर्ष तैयार खड़े रहते हैं। ऐसे ही प्रेम में पड़कर जीवन साथी का चुनाव करना और इसके लिए परिवार व समाज से बगावत के लिए भी तैयार रहना वर्तमान संदर्भ के कई महŸवपूर्ण उदाहरण है।
संयोगवश वैलेंटाइन डे के बाद महिला दिवस आता है, अतः प्रेम और महिला सशक्तिकरण के बीच संबंध पर चर्चा प्रासंगिक है। सेंट वैलेंटाइन डे के इतिहास के संबंध में कैथोलिक चर्च ने एक से अधिक वैलेंटाइन की पहचान की है जिनके नाम वैलेंटाइन या वैलेंटिनस था। प्रथम संदर्भ के अंतर्गत सेंट वैलेंटाइन के योगदान को इस रूप में याद किया जाता है जब तीसरी शताब्दी के दौरान रोम के क्लैडियस द्वितीय शासन के समय ये घोषित किया गया कि अविवाहित सैनिक अच्छा योद्धा साबित होगा, इसीलिए उसे शादी की इजाजत नहीं होगी, सेंट वैलेंटाइन ने इस फैसलों को गलत समझा और सैनिक प्रेमी जोड़े को छुपकर शादी कराने लगा, जब क्लैडियस द्वितीय को इसकी जानकारी मिली, तो उसके आदेश से सेंट वैलेंटाइन को मार दिया गया।
वैलेंटाइन के संबंध में दूसरा संदर्भ ये है कि एक वेलेंटाइन ने रोम शासन के समय जेल में उत्पीड़न किया जा रहा कुछ क्रिश्चियन को बचाने में मदद की। इसी दौरान उसको जेलर की बेटी से प्यार हो गया, उसके प्यार में आकर उसने जेलर की बेटी को तुम्हारा वैलेंटाइन कहते हुए कई रोमांटिक पत्र लिखे व प्रेम से संबंधित कई गिफट भी भेजे जिसके लिए उसे मौत के घाट उतार दिया गया। वैलेंटाइन के प्रेम और इसकी वजह से हुए बलिदान को समाज ने बाद के वर्षों में स्वीकार किया और इसे बड़े पैमाने पर 15वीं शताब्दी के बाद से वैलेंटाइन डे के रूप में मनाया जा रहा है।
महिलाओं के द्वारा महिलाओं के लिए प्रेमसंबंध के अधिकार का प्रथम प्रयास साहित्य के माध्यम से 18वीं शताब्दी के अंत में मैरी वोल्फस्टोन क्राट के द्वारा किया गया। इन्होंने लेखनी के माध्यम से बंधनयुक्त विवाह का विरोध किया और उन्मुक्त प्रेम संबंध की वकालत की। 1788 में अपने उपन्यास मैरी: ए फिक्शन में उन्होंने महिला को बच्चा पैदा करने वाली मशीन मानने से भी इंकार किया। धीरे-धीरे जागरूकता आती गई। सन 1855 में मैरी गोव निकोलस ने उन्मुक्त प्रेम संबंध की वकालत की व विवाह संस्था का विरोध यह कहते हुए किया कि पत्नी ससुराल में पुरुष की संपŸिा के रूप में देखी जाती है व वह पूरी तरह पुरुष द्वारा नियंत्रित की जाती है जो कि गलत है।
सन 1857 में मिनरवा पुटनाम ने भी उन्मुक्त प्रेम संबंध की वकालत की और शिकायत किया कि इसके पक्ष में समाज खड़ा हो नहीं रहा। सन 1987 में एक प्रसिद्ध महिलावादी ग्लोरिया स्टेनम ने भी उन्मुक्त प्रेम संबंध की वकालत करते हुए कहा कि एक महिला को भी पुरुष की जरूरत होती है। उन्मुक्त प्रेम संबंध को सामाजिक परिवर्तन का वाहक भी बताया। सीमोन द बोआ हिंदी अनुवाद, ‘स्त्री उपेक्षिता’ की लेखिका है, उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से महिलाओं के प्रेम संबंध की खुली चर्चा की तथा इसे जीवन व्यवहार में भी अपनाया। इन तमाम महिलाओं का कार्य व्यवहार महिलाओं की सोच को और आगे बढ़ाने का प्रयास किया।
वर्तमान समय में लेखनी, कला व संगीत के माध्यम से कई जागरूक महिलाएं उन्मुक्त प्रेम संबंध की वकालत कर रही है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्रेम संबंध को अभी सामाजिक स्वीकृत नहीं मिली है। एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक पश्चिमी देशों के 3000 प्रेम प्रसंगों की तुलना में हमारे यहां 1550 अर्थात करीब आधे प्रेम प्रसंग पाए जाते हैं। यद्यपि उच्चवर्गीय व पढ़े-लिखे कुछ परिवारों ने प्रेम संबंध को पिछले शतक से छिट-पुट तौर पर मंजूरी देना आरंभ कर दिया है। सूचिता कृपलानी, अरुणा आसफअली, इंदिरा गांधी, शीला दीक्षित, बसुंधरा राजे, पंडिता रमाबाई जैसे अनेकों उदाहरण स्थापित है। इन सबको देश में खासा सम्मान मिला हुआ है।
कानूनी तौर पर महिलाओं को प्रेम संबंध की मंजूरी ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के रूप में दी गई है जिसका बड़ा उदाहरण हिंदी सिनेमा उद्योग और दूरदर्शन कलाकारों के बीच देखा जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद 99 प्रतिशत महिलाएं अपने प्रेम संबंध को बयान नहीं कर पाती है जिसकी एक बड़ी वजह महिलाओं द्वारा यौन अपराध सहन करना व यौन संचारित रोगों से भी जूझना है। महिलाओं के बीच प्रेम संबंध की अभिव्यक्ति के अभाव में कुछ अन्य समस्याएं भी पाई जाती है। जिसमें महिलाओं का तनावग्रस्त रहना, गाली-गलौज बोलना व वैवाहिक संस्था में विश्वास का अभाव प्रमुख है। इसके बावजूद महिलाओं को अपनी स्वैच्छा से प्रेमसंबंध बनाने की आजादी सामाजिक व्यवहार में शामिल नहीं है। ऑनर किलिंग की घटनाएं इसके विद्रूप उदाहरणों में से एक है। हमारे समाज में पाए जाने वाले इसके अन्य विद्रूप उदाहरण में शामिल है, वैवाहिक पत्नी को अभी तक पुरुष की संपŸिा के रूप में देखा जाना व प्रेम संबंध बनाते वक्त स्त्री की आवश्यकता, तरीका व उसके आनंद के प्रति सजग नहीं होना।
महिला अधिकार अभियान द्वारा वैलेंटाइन डे के उपलक्ष्य पर प्रेम संबंध व संतुष्टि के विषय पर एक सर्वे किया गया जिसमें 50 से अधिक महिलाओं ने भागीदारी ली। 24 महिलाओं से पूछे गए प्रेम संतुष्टि के सवाल पर सीधा जवाब था सामाजिक तौर पर बच्चे जनने के अलावा कोई खुशी या आनंद भी प्रेम संबंध से मिलता है, यह वैवाहिक जीवन के दशकों पार करने के बाद भी नहीं पता चला। 13 महिलाओं ने यह शिकायत की कि प्रेम संबंध के दौरान शारीरिक अंतर्संबंध बनाने से पूर्व प्रेमातुर करने की प्रक्रिया नहीं अपनायी जाती, जिस कारण से प्रेम संबंध में प्रेम का अनुभव नहीं होता। 4 महिलाओं ने प्रेम संबंध और संतुष्टि के प्रसंग पर कहा कि हमने शुरूआत में जब प्रेमसंबंध को संतुष्टि में बदलने के लिए पहल की ताकि मुझे भी आनंद का अनुभव हो तो मेरे इस पहल को उन्होंने आवश्यक नहीं समझा, मुझ पर व्यंग्य किया व सार्वजनिक रूप से भी फब्तियां कसी, तब से प्रेम संतुष्टि पर मैंने सोचना छोड़ दिया और पति के संतुष्टि पर निर्भर हो गई। 2 महिलाओं ने कहा कि वैवाहिक जीवन से ही हमने प्रेम संबंध को संतुष्टि से जोड़ने व आनंददायक बनाने के लिए पति से पहल की और पति ने साथ निभाया । आठ महिलाओं का प्रेम संबंध और संतुष्टि के विषय में बताया कि किसी कारणवश विवाहेŸार संबंध होने पर संतुष्टि महसूस किया फिर वैवाहिक जीवन में उस अनुभव को लागू किया। अब मेरा वैवाहिक प्रेम संबंध संतुष्टि और आनंद का सम्मिश्रण है। इस संतुष्टि के कारण पति-पत्नी के बीच आस्था भी विकसित हुआ।
इस सर्वें के माध्यम से हमने पाया कि जिन युगल जोड़े का प्रेमसंबंध आनंददायक था, वे असंतुष्टों की तुलना में अधिक विश्वासपूर्ण व सुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे।
अतः प्रेम का एक रूप वह ज्वाला है जिसके दायरे में कई परिवार आ सकते हैं वही प्रेम का दूसरा रूप वह शीतल कण है जो दुश्मन को भी दोस्त बना सकता है।
प्रेम के उन्मुक्त संबंध को लेकर भारतीय ऐतिहासिक दृष्टि से अंजनि एक महŸवपूर्ण नाम है। हनुमान की मां अंजनि ने अपने प्रेम को महिला अधिकार से जोड़कर दुनिया के सामने रखा और प्रेम संबंध से उत्पन्न बेटे को उन्होंने सिर्फ अपना नाम दिया। इनके प्रयास से प्रेम संबंध और महिला अधिकार की वास्तविक समझ सामने आई। ये उदाहरण वास्तव में महिलाओं की प्रेम की शुरुआती आजादी और अधिकार की अभिव्यक्ति का सवाल माना जा सकता है। (जैसा कि ज्ञात है हनुमान अंजनि पुत्र के रूप में पहचाने जाते हैं। वैसे अंजनि पर अत्यधिक पुरूषवादी दबाव पड़ने पर उन्होंने हनुमान को पवन पुत्र कहा, जिसका मतलब होता है हवा अर्थात अदृश्य यानी कोई नहीं।) कुछ अन्य ऐतिहासिक महिलाएं जिन्होंने विवाह से पूर्व या फिर विवाहेŸार संबंध अपने प्रेम संतुष्टि के लिए बनाए उसमें रामायण के महिला पात्रों में कौशल्या, कैकेयी व सुमित्रा का नाम आता है। (रामायण के अनुसार जब दशरथ कमजोर पुरुष साबित हुए व वंश समापन की ओर था, उस स्थिति में पति के द्वारा ही पहल किए जाने पर श्रंृगी ऋषि को बुलाया गया व वंश वृद्धि के उद्देश्य से दशरथ की पत्नियों ने प्रेम संबंध बनाए। श्रृंगी के साथ प्रेम संबंध महिलाओं के लिए इतना आनंददायी था कि सभी बच्चे स्वस्थ पैदा हुए।)
महाभारत के महिला पात्रों में जिन्होंने विवाहपूर्व या विवाहेŸार संबंध बनाए उसमें गंगा, सत्यवती, अंबा, अंबिके तथा कुंती का नाम प्रमुख है।
महाभारत में गंगा के बारे में कहा गया है कि उसने पति शांतनु द्वारा पैदा हुए बच्चे को पालना नहीं चाहती थी, इसीलिए गंगा उसे पानी में फेंक देती थी, आंठवे बच्चे के रूप में भीष्म बनाम देवव्रत इसीलिए जीवित बचे क्योंकि शांतनु ने उसे पानी में फेंकने का विरोध किया, इसीलिए गंगा पति शांतनु को देवव्रत को सौंप दी और खुद पानी में विलीन हो गई।
(इस तथ्य के बारे में एक तर्क ये हो सकता है कि गंगा शांतनु की प्रेमिका हो, पत्नी नहीं तभी समाज के लिहाज व डर से अपने प्रेमसंबंध से उत्पन्न बच्चे को वह नष्ट करती रही। ये तर्क इसलिए भी उचित दिखता है क्योंकि आज भी समाज मां के रूप को सबसे अधिक श्रेष्ठ मानता है, इसलिए क्योंकि अगर स्त्री को बच्चे पैदा करने व पालने का सामाजिक सम्मान मिले तो उसे किसी भी हाल में नष्ट नहीं कर सकती और उसके जीवन व विकास के लिए हर संभव प्रयास करती है, इतना जितना कि कोई पुरुष बनाम पिता नहीं कर पाता। कई ऐसी महिलाओं का उदाहरण भी सामने आया है कि जहां समाज उसे प्रेम संबंध से उत्पन्न बच्चे को पैदा करने की इजाजत नहीं दी, वहां भी कुछ महिलाओं ने बच्चे को पैदा किया है, अगर उसे पाल नहीं पायी तो उसे मारा भी नहीं, कुंती ऐसी ही एक मां है जिसने विवाह पूर्व कर्ण को जन्म दिया लेकिन उसे नहीं पालने की स्थिति में जीवित पानी में डाल दिया ताकि कोई और पाल लें। यहां गंगा के संदर्भ में यह जान पड़ता है कि सामाजिक डर से कई बच्चे नष्ट किए जाने के बाद जब उसे स्त्री के मातृत्व अधिकार का बोध हुआ तो उसने अपने बेटे देवव्रत को मारने से मना किया और सार्वजनिक रूप से अपने प्यार व बच्चे के सामाजिक अधिकार की मांग की। बात समाज के सामने आने पर शांतनु ने बेटे देवव्रत को अपने घर में तो रख लिया लेकिन उसे उŸाराधिकारी नहीं बनाया और गंगा को भी पत्नी का दर्जा नहीं दिया। महाभारत में गंगा की भूमिका के साथ बहुत अन्याय किया गया, उसे प्रेम में धोखा भी मिला, और चाहकर भी प्रेमी को पति के रूप में प्राप्त नहीं कर पायी, पिता के घर में रहने का उसके बच्चे को जगह तो मिला पर गंगा के बच्चे को पिता का बराबर का प्यार और अधिकार नहीं मिला। इतनी यांत्रणाएं झेलने के बावजूद इतिहास गंगा को बच्चे मारने वाली मां के रूप में याद करता है जो कि एक स्त्री के लिए बहुत ही दुखदायी और कष्टदायक है। गंगा ने शांतनु के साथ सच्चे मन से प्यार किया लेकिन शांतनु ने उसके प्रेम को अपमानित और कलंकित किया।
गंगा के साथ हुए अन्याय व प्रेमसंबंध के अपमान ने महाभारत को जन्म दिया, शांतनु ने गंगा के साथ प्रेम संबंध स्थापित करने के बावजूद उसे अपनाया नहीं लेकिन इसके बावजूद गंगा की प्रेम की सच्चाई ने उसे महाभारत की मजबूत स्तंभ भीष्म पितामह की जननी के रूप में अपनी उपस्थिति मजबूत की।
उपरोक्त तर्क इस सिद्धांत की वजह से भी मजबूती प्रदान करता है महाभारत में गंगा को नदी से जोड़ा गया है अर्थात पानी जो स्त्री का प्रतीक हैं परन्तु वास्तव में एक जीवस्त्री नहीं। हो सकता है कि उस स्त्री का नाम गंगा ही हो और उसे नदी के भी नाम होने के कारण भ्रम पैदा किया गया हो।
यद्यपि शांतनु ने स्त्री सुख के लिए बेटे देवव्रत को शादी के अधिकार तक से वंचित किया, इसलिए देवव्रत का प्रत्यक्ष कोई वंश नहीं बना लेकिन महाभारत गंगा पुत्र देवव्रत से शुरू होकर भीष्म के मौत के साथ खतम हो गई।
महाभारत की दूसरी पात्र सत्यवती ने शांतनु से विवाह से पूर्व पराशर से प्रेम संबंध बनाया जिसके फलस्वरूप वेदव्यास हुए, प्रेमसंबंध से उत्पन्न वेदव्यास को महाभारत के सभी पात्रों में सबसे ज्ञानी माना जाता है और इसके माध्यम से सत्यवती को मिला ज्ञानवान वेदव्यास की मां बनने का गौरव मिला।
शादी के बाद सत्यवती को शांतनु से दो बेटे हुए। दोनों बेटे शादी के बाद बिताए शादीशुदा जीवनकाल के दरम्यान अच्छे पुरुष नहीं साबित हो पाए और युवाकाल में ही निसंतान मर गये तब सत्यवती ने अपने दोनों बहुएं अंबा तथा अंबिका को अपने प्रथम पुत्र अर्थात प्रेमसंबंध से उत्पन्न वेदव्यास से बहुओं को संबंध स्थापित करने के लिए कहा ताकि वंश की वृ़ि़द्ध हो सकें जबकि आज की तारीख में भारतीय समाज की हिंदु संस्कृति में जेठ का स्पर्श भी नाजायज माना गया है। पारिवारिक इजाजत से अंबा तथा अंबिके द्वारा विवाहेŸार संबंध बनाए जाने के बाद पांडु व धृतराष्ठ पैदा हुए। महाभारत में कहा गया है कि व्यास के जंगली रूप को देखकर अंबा व अंबिका संबंध बनाते वक्त डरती रही अर्थात आनंद नहीं प्राप्त किया इसीलिए उन दोनों के ही बच्चें धृतराष्ट्र व पांडु विकृत बच्चे के रूप में पैदा हुए। ये भी हास्यास्पद ही है कि जिस व्यास को महाभारत में ज्ञानी माना जाता है, उसे स्त्री के प्रेम संतुष्टि की समझ नहीं थी।
महाभारत की एक प्रमुख पात्र कुंती ने भी विवाह से पूर्व व विवाह के बाद विवाहेŸार संबंध बनाए। कुंती द्वारा विवाहपूर्व प्रेमसंबंध की परिणति कर्ण है लेकिन कुंती ने उसे अपनाया नहीं। विवाह के बाद पांडु के कमजोर पुरुष साबित होने पर इन्होंने पति की इच्छा व सहमति से तीन अन्य पुरुषों से अपनी शारीरिक आवश्यकता, प्रेम संतुष्टि व वंशवृद्धि के लिए प्रेम संबंध स्थापित किया और युधिष्ठिर, भीम और अर्जून को जन्म दिया। पांडु की दूसरी पत्नी माद्री ने भी कुंती के पदचिन्हों का अनुशरण करते हुए दो अन्य पुरुषों से प्रेम संबंध स्थापित किया और दो बच्चे नकुल और सहदेव का जन्म दिया। कुंती ने अपने प्रेमसंबंधों के बदौलत ही समाज में एक मजबूत स्त्री और मां की भूमिका निभाई और इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों से दर्ज करवा लिया। एक अन्य उदाहरण है शकुंतला का, उन्होंने प्रेम संबंध बनाया और उससे उत्पन्न बेटा भरत को सार्वजनिक रूप से स्वीकार की, बिना यह सोचे कि उसका पिता स्वीकार करेगा कि नहीं। शकुंतला ने भरत को ऐसे लालन-पालन किया ताकि मुश्किल घड़ी में भी वह सही तरीके जीवन जी सके। फिर हमारे देश भारत का नाम शकुंतला के प्रेम संबंध से उत्पन्न भरत के ऊपर पड़ा है। फिर हम भारतीय प्रेम को क्यों न पूजे ?
ऐसे कई उदाहरण आज भी प्रतीक बने हुए है महिलाओं के प्रेम की आजादी का और उसे समाज के सामने स्वीकृत करने की हिम्मत कर गर्व के साथ जीने का। इन महिलाओं में से कई को समाज में पूजा जाता है लेकिन आज के समाज व्यवहार में इन महिलाओं द्वारा स्थापित यौन शूचिता की समझदारी को वैध नहीं माना जा रहा है।
जबकि पुरुष के व्यक्तित्व विकास के लिए प्रेम संबंध हेतु सामाजिक परिस्थितियों में मौन स्वीकृति मिली हुई है, ऐसी स्वीकृति स्त्री को भी क्यों न मिलें। स्त्री भी पुरुष के समान है।
अतः स्त्री को भी अपनी पसंद, खुशी व प्रेम संबंध से प्राप्त संतुष्टि का सामाजिक अधिकार चाहिए। जब किसी पुरुष द्वारा प्रेम संबंध में नये वस्त्र धारण करने के बाद पूरानी वस्त्र का उपयोग खतम हो जाती है, फिर महिला के लिए प्रेम संबंध को महिला शूचिता से क्यों जोड़ा जाय। क्यों न इसे महिला की एक अन्य जरूरी आवश्यकता के रूप में देखा जाय जिसकी जरूरत पर उपलब्ध स्रोतों से उपयोग किए जाने पर बात वही पर खतम हो और महिला को सजा का हकदारिनी न घोषित किया जाय न ही दंडित किया जाय। जब तक महिलाओं को प्रेम संबंध व संतुष्टि प्राप्त करने की आजादी नहीं मिलेगी यह महिला सशक्तिकरण के सवाल को बार-बार कटघरे में खड़ा करता रहेगा।
nice..
ReplyDelete